भारत के रसोईघरों में अब नई सब्जियों-मसालों का आगमन लगातार हो रहा है। उसका कारण यह है कि विदेशों से इनका आना आसान हो रहा है और खाद्य सामग्री घर पहुंचाने वाली कंपनियों ने इनको रसोई तक पहुंचाने में सकारात्मक भूमिका निभाई है। इन्हीं सब्जियों आदि में एक नया नाम अजमोद भी जुड़ गया है। अजमोद की बड़ी विशेषता है कि यह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को सुधारता है। इसके अलावा यह हड्डियों की हिफाजत करने में भी मददगार है। इसमें जीवाणुरोधी गुण भी पाए गए हैं। यह विदेशी सब्जी है, लेकिन भारत में इसका प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है।
अजमोद को अजवाइन भी कहा जाता है, लेकिन चलन में इसका अंग्रेजी नाम पार्सले ही है। अगर आप आईएनए का बाज़ार या खान बाज़ार जाएंगे तो वहां सब्जी की दुकानों पर यह जरूर दिख जाएगा। यह वहां पर 12 महीने बिकता है। असल में इसे एक तरह से हरे धनिये का विकल्प माना जाता है, लेकिन तासीर व गुणों में यह उससे अलग है। इसकी सुगंध धनिये से बिल्कुल अलग होती है। इसे सब्जी की श्रेणी में रखा गया है, लेकिन असल में यह एक तरह से मसाला है जो सब्जियों में सजावट के लिए डाला जाता है। इसके बावजूद यह सब्जी में अपनी खुशबू व गुण छोड़ देता है और उसका स्वाद भी बढ़ा देता है। इसका उपयोग सलाद के अलावा सूप, स्टॉज और सॉस में एक अतिरिक्त घटक के रूप में खूब किया जाता है।
मांसाहारी खाने में नया स्वाद भरने के लिए उसके मसाले में इसे डाला जाता है। खास बात यह है कि अजमोद की जड़ों का उपयोग सूप में सब्जी के रूप में भी हो सकता है। इसको सुखाकर भी सब्जी पर भुरककर उसका स्वाद बढ़ाया जा सकता है।
अजमोद का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। खाद्य इतिहासकार पुष्टि करते हैं कि यह भूमध्यसागरीय भूमि का मूल निवासी है और इसका उपयोग भोजन को स्वादिष्ट व सजाने के लिए किया जाता था। मसाला प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाने वाले व भारत की एग्मार्क लेब के संस्थापक निर्देशक जीवन सिंह प्रुथी ने अपनी पुस्तक ‘Spcices And Condiments’ में अजमोद को मसाला माना है। उन्होंने इसका उत्पत्ति स्थल सार्डीनिया (भूमध्य सागर का दूसरा सबसे बड़ा द्वीप, जो इतालवी प्रायद्वीप के पश्चिम में स्थित है) माना है।प्रुथी के अनुसार भूमध्यसागर के आसपास के क्षेत्रों और अमेरिका में यह जंगली तौर पर मिलता था। इसके पत्तों और बीजों को मसालों के तौर पर बरता जाता है।
विश्वकोश ब्रिटानिका ने भी इसे भूमध्यसागरीय भूमि का मूल निवासी बताया है और जानकारी दी कि अजमोद की पत्तियों का उपयोग प्राचीन यूनानियों और रोमनों द्वारा भोजन को स्वादिष्ट बनाने और सजाने के लिए किया जाता था। पत्तियों को ताज़ा या सुखाकर उपयोग किया जाता है, उनका हल्का सुगंधित स्वाद मछली, मांस, सूप, सॉस और सलाद के साथ लोकप्रिय है। यह हजारों वषोँ से मेक्सिको, कनाडा, पश्चिम जर्मनी, हैती, फ्रांस, हंगरी, बेल्जियम, इटली, स्पेन और यूगोस्लाविया में भी उग रहा है। अब यह भारत में भी आसानी से उगाया जा रहा है और ऊंचाई वाले इलाकों में खूब फल-फूल रहा है।
इसमें हैं जीवाणुरोधी और कवकरोधी गुण
अपनी विशेष खुशबू और गुणों के चलते खानपान में अजमोद का चलन लगातार बढ़ रहा है। उसका एक विशेष कारण यह है कि अजमोद शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को सुधारता है और सामान्य बीमारियों से शरीर को बचाने में मदद करता है। जीवन सिंह प्रुथी के अनुसार इसके ताजा पत्तों में लौह, कैल्शियम, कैरोटीन (एंटीऑक्सीडेंट तत्व) व विटामिन सी काफी होता है, इसीलिए यह शरीर के लिए लाभकारी है।
दूसरी ओर खाद्य विशेषज्ञ व पोषण विशेषज्ञ नीलांजना सिंह के अनुसार यह पुष्टि की गई है कि सामान्य बीमारियों में अजमोद बेहद कारगर है, क्योंकि यह प्रतिरक्षा प्रणाली में सुधार करता है। इसमें विटामिन के भी पाया जाता है, जो हड्डियों के घनत्व को बढ़ाता है, उसको मजबूती प्रदान करता है और हड्डी के टूटने से लड़ने में मदद करता है। शोध में इसमें जीवाणुरोधी और कवकरोधी गुण भी पाए गए हैं। यह सांसों में दुर्गंध को रोकने में भी अपनी बड़ी भूमिका अदा करता है। इसे पेशाब संबंधी दोषों में भी लाभकारी माना जाता है।
अजमोद में विटामिन सी की मौजूदगी शरीर को रक्ताल्पता से भी बचाती हैं। इसके रस में फोलिक एसिड (कोशिकाओं को स्वस्थ रखने वाला तत्व) भी पाया जाता है। इसका एक लाभ यह भी होता है यह दिल के दौरे या स्ट्रोक के खतरे को कम कर देता है, जिससे दिल कि कार्यक्षमता सुचारू रहती है। यह शरीर में होने वाली सूजन को भी रोकने में मददगार है। यह प्राकृतिक रूप से शरीर से लगातार विषाक्तता को भी बाहर करता रहता है। सामान्य रूप से इसके सेवन से किसी प्रकार के खराब असर का अंदेशा नहीं है, लेकिन जिन लोगों को एलर्जी की समस्या है, यह उसे बढ़ा सकता है। इसका ज्यादा सेवन पेट में भी गड़बड़ पैदा कर सकता है।
आशीष ठाकुर – हिमाचल प्रदेश