बिहार के गया में अरण्यक नाम से वन विभाग द्वारा वन उत्पाद के बिक्री केंद्र चला जा रहें हैं। यह विक्री केंद्र बिल्कुल अलग हैं। यहां मिलने वाले सारे उत्पाद पर्यावरण अनुकूलन और ग्रामीण और जनजाति लोगो द्वारा निर्मित हैं। जिसके निर्माण में मुख्य भागीदारी ग्रामीणों जनजातीय महिलाओं की है।
बिहार में गया वन विभाग द्वारा किया गया अनूठा प्रयोग काफी सफल साबित हो रहा है। परंतु दुर्भाग्य यह है, ऐसे बेहतरीन कार्य की जितनी चर्चा होनी चाहिए और प्रशंसा मिलनी चाहिए वह नहीं मिल पा रही है। गया वन विभाग द्वारा अरण्यक नाम से चलाया जा रहा यह अनूठा कदम जहां एक ओर पर्यावरण संरक्षण में बेहतरीन साबित हो सकता है वहीं इसके माध्यम से हजारों ग्रामीण और जनजातीय महिलाओं और युवाओं को रोजगार भी प्रदान किया जा रहा है।
अरण्यक केंद्रों के माध्यम से बेचे जा रहें है कई उत्पाद
इन केंद्र पर वन उत्पाद से निर्मित अरण्यक गुलाल, जंगली बैर का आचार, वन नंबर के द्वारा निर्मित जंगली मधु, विभिन्न कीटनाशक और पिडनाशक तेल जैसे लेमन ग्रास और वन तुलसी सुंदरम तेल जैसे उत्तम उत्पाद मिलते हैं। सबई घास द्वारा निर्मित टोकरे चटाई जैसे बेहतरीन हस्तशिल्प कितनी प्रशंसा की जा उतनी कम है। महाबोधि मंदिर और विष्णु पद मंदिर में चढ़ाएं जा रहे फूलो से अगरबत्ती और धूपबत्ती का निर्माण किया जा रहा है।
एक और सबसे महत्वपूर्ण पहल जो महिलाओं के लिए एक गेम चेंजर है, ग्रामीण महिलाओं द्वारा सेनेटरी नेपकिन का निर्माण। जहां इन केंद्र से निर्मित सेनेटरी नेपकिन मासिक चक्र के समय इन महिलाओं को मुफ्त प्रदान किया जाता है, जिनसे इनके स्वास्थ पर काफी सकरात्मक प्रभाव आया है, वही इनके निर्माण के माध्यम से आमदनी का एक जरिया भी यहां कि लोगों को मिला है।
उम्मीद करनी चाहिए इन कार्यों को सरकार और निजी क्षेत्र द्वारा उचित समर्थन मिले। जिससे ना केवल ऐसे पहल को बढ़ावा मिले। वरन् अन्य वन विभाग द्वारा इसे कार्यों को अगर बड़े स्तर पर शुरु किया जाता है । तो ना केवल यह पर्यावरण के लिए बेहतरीन साबित होगा। साथ ही लाखों ग्रामीण और जनजाति महिलाओं और युवाओं को रोजगार प्रदान करेगा।
(लेखक प्रवीण भारद्वाज एनवायरमेंटल एंड सोशल डेवलपमेंट एसोसिएशन में एनवायरमेंटल प्रोजेक्ट डायरेक्टर हैं और लंदन प्रेस क्लब के सदस्य हैं। )