• Sat. Apr 27th, 2024

आखिर क्यों अमेरिका और यूरोप में तेज धूप से पड़ रहे हैं लोगों की त्वचा में फफोले

पूरा यूरोप और अमेरिका ग्रीष्म लहर की चपेट में है। यहां अभूतपूर्व गर्मी के अभिलेख टूट रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इसको लेकर चेतावनी जारी कर दी है। मौसम विभागों ने भी कई दिन पहले ही कह दिया था गर्मी का यह प्रकोप जारी रहेगा। यूरोप में इसका खासा असर देखने को मिल रहा है जहां लोगों को ज्यादा तापमान सहने की आदत नहीं है। वहां लोगों को त्वचा में जलन, लालिमा, धूप की कालिमा जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। सावधान ना रहने पर निर्जलीकरण लोगों की जान ले रहा है। आखिर ऐसा हो क्यों रहा है। विशेषज्ञ भी इस बात से सहमत हैं कि इसकी वजह केवल प्राकृतिक हो ही नहीं सकती है।

जलवायु परिवर्तन ही है इसका जिम्मेदार
विश्व मौसम विशेषता के त्वरित विश्लेषण के अनुसार गर्मी का इस तरह का प्रकोप बिना जलवायु परिवर्तन के लगभग असंभव ही था। एशिया पहले से ही गर्मी में झुलस रहा था और इस महीने अमेरिका और यूरोप में हालात चिंताजनक होते जा रहे हैं।डब्ल्यूडब्ल्यूए  अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों का एक समूह है जो चरम मौसमी घटनाओं में जलवायु परिवर्तन की भूमिका की पड़ताल करता है।

हर जगह गर्मी का भीषण प्रकोप
तेज गर्मी से फसलों को नुकसान, मवेशीयों का खत्म होने लगना, जंगलों में आग तेजी से फैलना, पानी की कमी का दबाव बढ़ना और इन सबके साथ लोगों के मरने की संख्या में इजाफा होते जाना, उत्तरी गोलार्द्ध में आपात स्थितियां पैदा कर रहे हैं। और ऐसा तीनों महाद्वीपों में देखने को मिल रहा है। केवल दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में मानसून के अलग प्रभाव दिख रहे हैं।

लोग ग्रीष्म लहर से जूझ रहे हैं 
एक हालिया अध्ययन के मुताबिक पिछले साल ही यूरोप में अभिलेख तोड़ गर्मी की वजह से 61 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। तब भी ग्रीष्म लहर का प्रकोप इसका सबसे बड़ा और प्रमुख कारण था। वहीं इस साल मैक्सिको में मार्च से अब तक सौ से भी ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। अमेरिका से इटली में ग्रीष्म लहर से पीड़ितों की अस्पताल में बाढ़ सी आ गई है।

कितनी गर्म हो गई है दुनिया
जलवायु परिवर्तन ने इन हालातों को कितना प्रभावित किया है, इसे जानने के लिए डब्ल्यूडब्ल्यूए की टीम ने दुनिया भर के कम्प्यूटर प्रतिमानों और मौसमी आंकड़ों की वर्तमान जलवायु प्रतिमानों से तुलना कर पड़ताल की और पाया कि अभी दुनिया पूर्व औद्योगिक युग की तुलना में औसतन 1.2 डिग्री ज्यादा गर्म है जो दिखने में बहुत कम लगता है, पर असर दिखाई दे रहे हैं।

सामान्य होता असामान्य
उन्होंने पाया कि जलवायु परिवर्तन अपने चरम पर है और अगर इंसानों ने तेल, कोयला और गैस को जला कर पृथ्वी को इतना गर्म ना किया होता, तो इस तरह की झुलसा देने वाली गर्मी ज्यादा से ज्यादा अपवाद के रूप में ही देखने को मिलती। लेकिन दुनिया तो जीवाश्म ईंधन जलाना रोक ही नहीं रही है। आज तो चरम ग्रीष्म लहरें देखने को मिल रही हैं, अमेरिका और मैक्सिको में हर 15 साल में, दक्षिणी यूरोप में हर 10 साल में, तो वहीं चीन में हर पांच साल में एक बार दिखती है.

और बढ़ती रहेगी गर्मी
चिंता की बात यही है कि इस तरह के हालात अपवाद के तौर पर नहीं बल्कि एक तरह का नियम बनाते हुए बन रहे हैं। प्रतिवेदन के मुताबिक प्रदूषण ने ग्रीष्म लहर को यूरोप में 2.5 डिग्री ज्यादा, उत्तरी अमेरिका में 2 डिग्री और चीन में एक डिग्री ज्यादा गर्म कर दिया है। इतना ही नहीं, अगर ठोस कदम ना उठाए गए तो भविष्य में यह गर्मी-ठंडी-गर्मी का मौसम कहलाएगा।

वैज्ञानिकों का कहना है कि इस साल अल नीनो का प्रभाव यूरोप पर दिखाई देना शुरू हो गया है जो की गर्मी का असर देता है। इससे भी तापमान बढ़ा है, लेकिन वैज्ञानिक इस भीषण हालात के लिए जीवाश्म ईंधन के कारण हुई ग्लोबल वार्मिंग को ज्यादा जिम्मेदार मानते हैं। और डब्ल्यूडब्ल्यूए के प्रतिवेदन हैरान करने वाली नहीं है बल्कि ग्रीष्म लहर आगे चरम होती जाएगी। प्रतिवेदन में बताया गया है कि इतने गंभीर हालात होने के बाद भी हमारे पास मौका है लेकिन आपात के तौर पर कदम उठाने होंगे।

आशीष ठाकुर – हिमाचल प्रदेश