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जलवायु परिवर्तन बदल रहा है महासागरों का रंग

जलवायु परिवर्तन के कुप्रभावों के व्यापक और गहन संकेत मिल रहे हैं। पहले ये प्रभाव प्रमुख तौर पर वायुमंडल पर ही सबसे ज्यादा दिखाई देते थे। लेकिन अब पिछले कुछ सालों सें महासागर भी इसके प्रत्यक्ष संकेत देने लगे हैं। अमेरिका और यूके के वैज्ञानिकों ने दो दशकों की उपग्रह तस्वीरों के विश्लेषण से पाया है कि पृथ्वी के 56 फीसद से ज्यादा महासागरों का रंग ज्यादा हरा होता गया और यह गर्म होती दुनिया का महासागरों की सतह पर रहने वाले पादप प्लवकों पर होने वाले असर का प्रभाव है। इस तरह का प्रभाव भूमध्य रेखा के आसपास के महासागरों में ज्यादा देखने को मिल रहा है जिससे साफ पता चल रहा है कि समुद्री सतह तंत्र बदलाव के दौर से गुजर रही हैं।

पादप प्लवक जीवों की संख्या में हुआ इजाफा
नेचर में प्रकाशित अध्ययन में खुलासा हुआ है कि इन कटिबंधीय क्षेत्रों में महासागरों का लगातार हरे रंग का होता जाना काफ़ी चिंता का विषय है। यह बदलाव बताता है कि पानी में पदार्थ और प्राणी किसी बड़े और प्रभावी बदलाव से गुजर रहे हैं। जिनमें पादप प्लवक कहलाने वाले शैवाल जैसे महीन सूक्ष्मजीवी जो हरे क्लोरोफिल पदार्थ का उपयोग प्रकाश संश्लेषण के लिए करते हैं, की संख्या बढ़ रही है।

केवल प्राकृतिक कारण नहीं है
पादप प्लावक की मात्रा का बढ़ना महासागर पारिस्थितिकी तंत्र पर बहुत गहरा असर डालने वाला साबित हो रहा है। अमेरिका के मुसाचैसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और यूके के नेशनल ओशियानोग्राफी सेंटर के वैज्ञानिक महासागरों के रंग में यह बदलाव पिछले 20 सालों से अवलोकित कर रहे हैं और इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि ये बदलाव केवल प्राकृतिक कारणों से नहीं हो सकते हैं।

वजह है चिंताजनक
रंग में ये बदलाव इंसान की आंखों के लिहाज से बहुत ज्यादा स्पष्ट नहीं हैं लेकिन ये महासागरों के 56 फीसद क्षेत्र यानि पृथ्वी की कुल जमीनी इलाके से ज्यादा का क्षेत्र घेरे हुए हैं। एमआईटी के अर्थ एटमॉस्फियरिक एंड प्लैनेटरी साइंस की वरिष्ठ शोध वैज्ञानिक स्टेफनी डचकिविच ने बताया कि कई सालों से महासागरों के रंग मे बदलाव करने वाले अनुकरण चिंताजनक वजहें बता रहे हैं।

मानवीय गतिविधियों की ज़िम्मेदारी
खास बात यह है कि ये बदलाव इंसानों द्वारा जलवायु में किए गए बदलावों से खासा तालमेल खाता है। अध्ययन के प्रमुख लेखक और यूके के साउथैम्पटन स्थित नेशनल ओशियोनोग्राफी सेंटर के बीबी काएल का कहना है कि इससे और ज्यादा प्रमाण मिलते हैं कि मानवीय गतिविधियां पृथ्वी के जीवन पर कितना व्यापक प्रभाव डाल रही हैं।

पादप प्लवकों की भूमिका
पादप प्लवक के जरिए पहले भी महासागरों के पारिस्थितिकी तंत्र को समझने और जलवायु परिवर्तन के महासागरों पर प्रभाव को जानने का प्रयास किया जाता रहा है। ये समुद्री खाद्य जाल और कार्बन डाइऑक्साइड को वायुमंडल से महासागरों को सहेजने में बड़ी भूमिका निभाते हैं। लेकिन उनकी बढ़ती संख्या एक चिंता का कारण बनती जा रही है।

उपग्रह उपकरण से अवलोकन
शोधकर्ताओं का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को सही तरह से समझने के लिए कम से कम 30 सालों तक लगातार निगरानी और अवलोकन की जरूरत होगी। वर्तमान अध्ययन में काएल और उनकी टीम ने 21 साल से महासागरों की निगरानी करने वाले एक्वा उपग्रह के मॉडरेट रिजोल्यूशन इमेजिंग स्पेक्ट्रोरेडियोमीटर (एमओडीआईएस) से लिए गए महासागर रंग प्रबंधन का विश्लेषण किया।

पादप प्लवक कार्बनडाइऑक्साइड का अवशोषण करते हैं। इस लिहास से वे महासागर में इसके भंडारण में अहम भूमिका निभाते हैं, लेकिन इनकी संख्या में इजाफे का केवल यही अर्थ नहीं है कि इससे वायुमंडल से अधिक कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित होगी लेकिन यह हालात को और जटिल बनाने का काम करते हुए अपने समुद्री पर्यावरण का तापमान, पोषण और प्रकाश की उपलबधता, आदि में बदलाव कर देते हैं जिससे समुद्री खाद्य जाल पर बहुत विपरीत असर होता है जिसका सीधा असर मछलियों की जनसंख्या आदि पर पड़ता है।

आशीष ठाकुर – हिमाचल प्रदेश