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चीन के खिलाफ़ शुरू हुआ बड़ा युद्धाभ्यास

सिडनी: ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्रमंडल में 11 देशों के 30 हजार सैनिकों के साथ एक विशाल युद्धाभ्यास का आयोजन किया जा रहा है। इसमें संयुक्त राज्य अमेरिका भी सम्मिलित होगा। भारत गणराज्य सहित चार अन्य देश इसके ऑब्जर्वर के रूप में कार्य करेंगे। इस युद्धाभ्यास का मकसद है कि चीनी जनवादी गणराज्य के हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बढ़ती हुई सक्रियता से निपटा जा सके। चीन ने पिछले कुछ समय से इस क्षेत्र में अपनी प्रतिष्ठा को मजबूत करने की कोशिश की है, जिससे अन्य देशों को परेशानी होती है।

यह एक अंतरराष्ट्रीय युद्धाभ्यास है, जिसमें ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के साथ-साथ 12 अन्य देशों के सैनिक शामिल होंगे। इसका उद्देश्य सुरक्षा, संचार, सहयोग और समन्वय के कौशलों को बढ़ाना है। इस युद्धाभ्यास में भारत सहित 4 देशों के प्रतिनिधि मात्र दर्शक हैं। इस युद्धाभ्यास का सबसे विवादित हिस्सा ताइवान स्ट्रेट में होने वाला है, क्योंकि चीन ने पहले ही इस क्षेत्र में अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया है। चीन को ऑस्ट्रेलिया-अमेरिका के इस कदम से आपत्ति हो सकती है, क्योंकि वह चीनी गणराज्य, ताइवान को अपना हिस्सा मानता है।

उल्लेखनीय है कि हिंद प्रशांत महासागर वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए बेहद ज़रूरी है। दुनिया का 80 प्रतिशत व्यापार इसी क्षेत्र से होता है। ऐसे में अगर इस क्षेत्र में अस्थिरता या सुरक्षा को लेकर कोई दिक्कत होती है तो इसका असर पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा और इससे सप्लाई चेन भी बाधित हो सकती है। यूक्रेन युद्ध की वजह से यह पहले से ही बाधित चल रही है।

ऑस्ट्रेलिया में तलिसमन सेब्रे के नाम से एक युद्धाभ्यास का आयोजन किया जा रहा है। यह एक दो वर्ष का युद्धाभ्यास है जो साल 2005 से प्रारंभ हुआ था। इस बार का युद्धाभ्यास विशेष है क्योंकि यह सबसे विशाल मापदंडों पर हो रहा है।

ऑस्ट्रेलिया में चल रहे युद्धाभ्यास पर चीन ने नकारात्मक रूप से टिप्पणी की है। चीन का सरकारी अख़बार ग्लोबल टाइम्स में एक आलेख में कहा गया है कि यह युद्धाभ्यास केवल पेपर टाइगर है। चीन के कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका सुरक्षा और लोकतंत्रिक मूल्यों के प्रति समर्पितता का ढोंग करते हुए, अन्य देशों पर प्रभुत्व स्थापित करने की कोशिश कर रहा है।

अमन ठाकुर – हिमाचल प्रदेश