अफ्रीकी महाद्वीप के देश सूडान गणराज्य में वहां की सेना और अर्धसैनिक बल के बीच चल रहे संघर्ष के कारण, सउदी अरब की राजशाही ने शनिवार रात को 158 फंसे हुए लोगों को बचाया, जिनमें कुछ भारतीय भी शामिल हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ ) की रिपोर्ट के मुताबिक, 15 अप्रैल तक लड़ाई में 400 लोगों की मौत हो चुकी थी और 3500 के करीब लोग घायल हुए थे।
भारत के विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने 18 अप्रैल को सऊदी अरब द्वारा भारतीय लोगों के सुरक्षित रेस्क्यू को लेकर सऊदी अरब के विदेश मंत्री फैसल बिन फरहान अल सऊद से बातचीत की थी। उसके पश्चात सऊदी अरब के विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारतीयों के साथ ही मित्र देशों के नागरिक, सूडान से सुरक्षित तरीके से पहुंचे हैं।
सऊदी अरब द्वारा सुरक्षित निकाले गए लोगों में राजनयिकों तथा अंतरराष्ट्रीय अधिकारियों के साथ-साथ 91 सऊदी अरबी नागरिक भी शामिल हैं। इसके अलावा, भारतीयों की संख्या की जानकारी अभी तक नहीं दी गई है।
आपको बता दें कि 16 अप्रैल को एक भारतीय नागरिक अल्बर्ट ऑगस्टीन की गोली लगने से मौत हो गई थी। भारतीय मिशन ने ट्वीट किया कि वह सूडान में डल ग्रुप कंपनी में काम करते थे। भारत सरकार ने पहले ही सूडान में रहने वाले अपने नागरिकों के लिए सलाह दे चुकी है कि वे अपने घरों के भीतर ही रहें। 21 अप्रैल को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक उच्च स्तरीय बैठक की और अधिकारियों को निर्देश दिए कि सूडान में फंसे भारतीयों को निकालने के लिए एक आपातकालीन योजना तैयार की जाए।
इस संघर्ष का केंद्र बनी सूडान की राजधानी खार्तूम में भारत के करीब 1500 नागरिक फंसे हुए हैं। सूडान के शहर अल-फशेर में कर्नाटक के हक्की-पिक्की आदिवासी समुदाय के 31 लोग फंसे हैं। यह लोग आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों को बेचने के हेतु सूडान गए हुए थे। जिनमें 19 लोग कर्नाटक के हुनसूर, 7 शिवामोगा और 5 लोग चन्नागिरी के निवासी हैं।
सूडान गणराज्य में फंसे हुए भारतीयों में मौजूद एक व्यक्ति एस. प्रभू ने मंगलवार को भारतीय समाचार पत्र इंडियन एक्सप्रेस से फोन पर बातचीत कर बताया था कि हम पिछले 4-5 दिनों से एक किराए के मकान में फंसे हुए हैं। हमारे पास खाने या पीने के लिए कुछ भी मौजूद नहीं है। बाहर से निरंतर धमाकों की आवाज आ रही है। यहां कोई भी हम लोगों की सहायता करने को तैयार नहीं है।
इस संघर्ष की जड़ 2000 के दशक में मिलती है, जब सूडान के पश्चिमी इलाके डार्फर में एक विद्रोह शुरू हो गया था। इससे मुकाबला करने के लिए सूडानी सेना ने जंजावीद मिलिशिया की मदद ली। ये मिलशिया ही आगे चलकर रेपिड सपोर्ट फोर्स में तब्दील हो गया और कई मिशनों में सूडानी सेना की मदद करने लगा।
डार्फर इलाके में होने वाला विद्रोह दुनिया के सबसे जानलेवा विद्रोह में शामिल है। वर्ष 2003 से 2008 के मध्य इस संघर्ष में 3 लाख लोगों की मौत हुई। वहीं, 20 लाख से ज्यादा लोग विस्थापित हुए। अंतररार्ष्ट्रीय अपराधिक न्यायालय ने वर्ष 2009 में इस मामले में सूडान के तानाशाह ओमार हसन अल बशीर पर मानवता के विरुद्ध अपराध और नरसंहार के आरोप लगाए थे।
तानाशाह अल बशीर ने डार्फर के विद्रोह को कुचलने में सहायता करने वाले जंजावीद लड़ाकों को सरकार की मान्यता देना चाहता था। इसके चलते ही वर्ष 2013 में इन लड़ाकों को आरएसएफ में तब्दील कर दिया गया।
अमन ठाकुर – हिमाचल प्रदेश