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केवल 19 घंटे का ही हुआ करता था पृथ्वी का एक दिन

पृथ्वी का एक दिन 24 घंटे का होता है। उन्हीं 24 घंटों के अनुसार हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी की योजना बनाते हैं। यहां तक कि हमारे शरीर की घड़ी भी पृथ्वी की इस घड़ी के अनुसार ढल चुकी है। लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था। अरबों साल पहले दिन की लंबाई इतनी लंबी नहीं होती थी। चीनी वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के दिन की लंबाई और उसके इतिहास का अध्ययन किया है और नतीजे में कुछ नई जानकारियां निकाली हैं। इसमें सबसे प्रमुख नतीजा यही है कि पृथ्वी के दिन की लंबाई समय के साथ एक सी बढ़ती रही, यह एक गलत धारणा है। वहीं दिन की लंबाई के निर्धारण में चंद्रमा की भी अहम भूमिका है।

चंद्रमा का कारक
चीनी विज्ञान अकादमी के भूविज्ञान और भूभौतिकी संस्थान के भूभौतिकविद रॉस मिशेल की अगुआई में हुए अध्ययन में उस दौर का खासतौर पर अध्ययन किया गया, जब पृथ्वी के दिन ज्यादा छोटे हुआ करते थे। अध्ययन में पता चला है कि चंद्रमा ने पृथ्वी के घूर्णन को प्रभावित किया है।

इस बार कुछ हटकर हैं नतीजे
अध्ययन में बताया गया है कि समय के साथ चंद्रमा ने पृथ्वी की घूर्णन ऊर्जा को ‘चुरा’ लिया था। इससे उसकी खुद की परिक्रमा की कक्षा बड़ी हो गई यानि वह पृथ्वी से दूर चला गया था। जहां अधिकांश पृथ्वी के घूर्णन के प्रतिमान यह अनुमान लगाते हैं कि, समय के साथ पीछे जाने पर पृथ्वी के दिन की लंबाई छोटी होती जाती है। वहीं इस अध्ययन के नतीजे कुछ और ही हैं।

भूगर्भीय आंकड़ों की मदद की कोशिश 
प्रकृति भूविज्ञान जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में भूगर्भीय आंकड़ों की मदद ली गई है। वैज्ञानिक हर महीने ज्वार भाटा से बनने वाली अवसाद परतों की गिनती करते थे जिससे पता चल सके कि पुरातन समय में दिन कितने घंटों का होता था। कठिन पद्धति होने के साथ इसकी सीमा अभिलेख में कमी और उनके निष्कर्ष से निकले विवाद भी बताए जाते हैं।

मिलनकोविच चक्र 
वहीं एक दूसरा तरीका जिसे साइक्लोस्ट्रैटीग्राफी कहते हैं इसमें मददगार साबित हुआ।  इस भूगर्भीय पद्धति में अवसादी परतों की रिदम के जरिए खगोलीय मिलनकोविच चक्र कि पहचान की जाती है, जिससे पृथ्वी के घूर्णन और कक्षा का जलवायु पर प्रभाव समझा जाता है। मिलनकोविच चक्र का संबंध पृथ्वी की अक्ष के झुकाव और उसकी डगमगाहट से है और इससे पुरानी पृथ्वी के तेज घूर्णन की जानकारी मिल सकती है।

पुरातनघूर्णन या पेलियोरोटेशन का सिद्धांत
हालिया बहुतायत में प्रकाशित हुए मिलनकोविच अभिलेख ने शोधकर्ताओं को पुरातनघूर्णन या पेलियोरोटेशन के सिद्धांत के परीक्षण का अवसर दिया। इस सिद्धांत में माना जाता है कि एक दौर ऐसा आया था जब कुछ समय के लिए पृथ्वी के दिन की लंबाई एक सी ही बनी रही। इसके पीछे की वजह जानने का जब प्रयास किया तो शोधकर्ताओं को चंद्रमा और सूर्य दोनों के ज्वरीय बल के प्रभाव का पता चला।

दोनों बलों का प्रभाव
पृथ्वी चंद्रमा के अलावा सूर्य के भी ज्वारीय बल का अनुभव करती है जो कि अभी चंद्रमा के ज्वारीय बल की तुलना में कमजोर होता है। लेकिन इसका प्रभाव तब ज्यादा रहा होगा जब पृथ्वी ज्यादा तेजी से घूर्णन करती थी और तब चंद्रमा का गुरुत्वाकार्षण बल कमजोर था। जहां चंद्रमा का बल पृथ्वी के घूर्णन को कमजोर करता है, वहीं सूर्य का बल उसे तेज करता है। ऐसे में एक समय ऐसा जरूर आया होगा जब दोनों बल बराबर हो गए होंगे।

इसी दौरान ही पृथ्वी के दिन की लंबाई बदलना रुक गई होगी और कुछ समय तक यह एक समान बनी रही होगी। शोधकर्ताओं ने पाया कि इस दौरान दिन की लंबाई 19 घंटे की थी और यह स्थिति एक अरब साल तक बनी रही थी। कई विशेषज्ञ इस नई जानकारी को पृथ्वी और यहां पर जीवन के विकास की अन्य घटनाओं से जोड़कर भी देख रहे हैं।

आशीष ठाकुर – हिमाचल प्रदेश