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2030 तक मीथेन गैस के उत्सर्तन को एक तिहाई तक कम करने का हैं लक्ष्य।

दुनिया के सबसे बड़े ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जकों में से एक भारत ने ग्लासगो सम्मेलन के दौरान मीथेन प्रतिज्ञा पर दस्तखत नहीं किए. मंगलवार को दुनिया के सौ देशों ने कसम उठाई कि मीथेन गैस का उत्सर्जन 2030 तक एक तिहाई कर देंगे. इससे पृथ्वी का तापमान कम रखने में मदद मिलेगी।भारत, चीन, रूस और ऑस्ट्रेलिया इस समझौते में शामिल नहीं हुए. भारत में विशेषज्ञों का कहना है कि वन कटाई और मीथेन उत्सर्जन रोकने के लिए हुए समझौतों में भारत इसलिए शामिल नहीं हुआ क्योंकि इससे उसके कृषि और व्यापार क्षेत्र प्रभावित होंगे।देश की 130 करोड़ आबादी का आधे से ज्यादा इसी क्षेत्र पर निर्भर है. दो तिहाई से ज्यादा भारतीय गांवों में रहते हैं और पशु पालन वहां की मुख्य आर्थिक गतिविधियों में शामिल है. इस कारण मीथेन उत्सर्जन रोकना भारत के लिए एक बड़ी चुनौती है।हम व्यापार का कोई जिक्र तक नहीं चाहते थे क्योंकि हमारा रुख यह है कि पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन पर किसी भी प्रतिबद्धता में व्यापार का जिक्र नहीं होना चाहिए। भारत विश्व व्यापार संगठन (WTO) का सदस्य है और उसका कहना है कि व्यापार से संबंधी कोई भी मसला संगठन के तहत ही सुलटाया जाना चाहिए।मीथेन उत्सर्जन के लिए सबसे बड़ा जिम्मा कृषि क्षेत्र पर है. उसके बाद तेल और गैस उद्योग का नंबर आता है और इसमें कटौती ही उत्सर्जन को सबसे तेजी से कम करने में सक्षम है. उत्पादन और परिवहन के दौरान अगर तेल और गैस उद्योग में गैस लीक को काबू किया जा सके तो बड़ा असर हो सकता है. यूएनईपी ने हाल ही में ग्लोबल मीथेन असेसमेंट मंच शुरू किया है।

सतीश कुमार