बीमा प्रतिनिधि (Insurance Agents) अपना लक्ष्य पूरा करने के लिए या अधिक आयोग लेने के चक्कर में गलत सूचना देकर लोगों की पॉलिसी करवा लेते हैं। इससे बीमा कंपनियों के साथ-साथ बीमाधारकों को भी बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है। अमूमन देखा जाता है कि बीमा प्रतिनिधि अनपढ़ और कम पढ़े लिखे लोगों को पॉलिसी के बारे में झूठी बातें बता कर बीमा करवा तो लेते हैं, लेकिन बीमाधारकों को इसका खामियाजा अवधि पूरी होने के बाद उठाना पड़ता है। ऐसा ही एक मामला पिछले दिनों राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग (National Consumer Commission) में आया, जिसमें आयोग ने बीमा कंपनी पर जुर्माना लगाने के साथ-साथ बीमाधारक को पूरी रकम भी दिलवाई।
बता दें कि पंजाब के मोहाली की रहने वाली अमरजीत कौर ने महिंद्रा ओल्ड म्यूचुअल लाइफ इंश्योरेंस लिमिटिड से 4 लाख 60 रुपये की बीमा पॉलिसी ली थी। बीमा प्रतिनिधि के कहने पर उन्होंने तीन साल बाद रकम निकलवाया तो सिर्फ 32 हजार रुपये का कंपनी ने लौटाए। ऐसे में महिला ने कंपनी के खिलाफ राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग में शिकायत दर्ज करा दी।
बीमा कंपनी पर कसा राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने शिकंजा
राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने इस पर बीमा प्रदत्त कंपनी से जवाब मांगा। आयोग ने इसे उपभोक्ता के अधिकारों का हनन बताया।राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने बीमा कंपनी को 4 लाख 60 रुपये का जु्र्माना लगाया। आयोग ने बीमा प्रदत्त कंपनी से कहा है कि वह 10 प्रतिशत अधिमूल्य रकम काट कर बाकी रुपये 4 हफ्ते में पीड़ित महिला को दें।
बीमा प्रतिनिधि का दायित्व है उपभोक्ता को सारी जानकारी देना
राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने कहा है कि बीमा पॉलिसी जारी करने से पहले बीमा कंपनी के प्रतिनिधि को उपभोक्ता को सारी जानकारी देना जरूरी है। ऐसा करना उस स्थिति में औऱ जरूरी हो जाता है जब पॉलिसी लेने वाला पढ़ा लिखा नहीं हो। अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो यह उपभोक्ता संरक्षण अधिनिनम 2019 का उल्लंघन माना जाएगा। उपभोक्ता कानून के तहत यह उपभोक्ता के अधिकारों का हनन माना जाएगा।
इस कानून से कसा जा रहा है शिकंजा
गौरतलब है मोदी सरकार ने 20 जुलाई, 2020 से पूरे देश में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-2019 लागू किया था। नए कानून नें उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 का स्थान लिया है। नए कानून में ग्राहकों और सेवा प्राप्त करने वालों को पहली बार नए अधिकार मिलें हैं। अब किसी भी तरह का उपभोक्ता देश के किसी भी उपभोक्ता न्यायालयों में मामला दर्ज करा सकता है।पहले के उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं था।
नए कानून में सेवा से जुड़े किसी भी मद में उपभोक्ताओं के भ्रामक विज्ञापन जारी करने पर भी कार्रवाई की जाएगी। नए उपभोक्ता कानून आने के बाद उपभोक्ता विवादों को समय पर, प्रभावी और त्वरित गति से निपटा सकेंगे। नए कानून के तहत उपभोक्ता अदालतों के साथ-साथ एक केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) बनाया गया है। इस प्राधिकरण का गठन उपभोक्ता के हितों की रक्षा कठोरता से हो इसके लिए किया गई है।
आशीष ठाकुर – हिमाचल प्रदेश