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राजस्थान में तेज हुई सियासी जंग

Nov 14, 2023 ABUZAR ,

यह दुनिया की प्राचीनतम पर्वतमाला अरावली की घाटियों में बसा कुम्भलगढ रहा है। विश्व विरासत और राष्ट्रीय वन्यजीव अभयारण्य भी। मेवाड़ के शूरवीर महाराणा प्रताप यहीं जन्में तो बनास और गोमती यहीं से मैदान की ओर बढ़ रहा है। कुम्भलगढ़-चारभुजा तहसील का एक हिस्सा ऊंची पहाडिय़ों से घिरा है तो उदयपुर-गोमती हाइवे से विभक्त दूजा आमेट इलाका मार्बल और प्रसंस्करण इकाइयों का भण्डार माना जाता है। यहां प्रसिद्ध कपड़ा बाजार है तो मां पन्नाधाय का ससुराल (कमेरी) भी। मेवाड़ की सरहद कुम्भलगढ़ से ही मारवाड़ को छूती है।

यहां के लोग सबसे दुर्गम और विविधता भरे भौगोलिक हालातों की मुश्किलों से दो-चार हो चुकी है। थोरिया, घाटा, गजपुर, बारिण्ड, बडग़ांव, ओलादर से मुख्यालय केलवाड़ा और वहां से रिछेड़-चारभुजा तक हरियाली भरपूर नजर आती है। अगर कुछ नहीं दिखता है तो बस सडक़ें। यही लोगों का पहला दर्द है। दूसरी और आखिरी पीड़ा है पेयजल। इसके बरअक्स आमेट ज्यादा विकसित और समृद्ध माना जाता है।

अपने 16वें विधायक को चुनने से ठीक 16 दिन पहले और बारिश के बाद कुम्भलगढ़ बेहद खामोश है, गोमती और बनास नदी की तरह। यहां न खेती है, न उद्योग। पर्यटन और वनस्पति ही जीवन की रीढ़ है।

भाजपा बेदाग काम और सिस्टम में बेदखली की पतवार थामे चुनावी नैया में बैठी है, वहीं कांग्रेस सरकार के पांच साल के कामों के बूते मैदान में है। पिछड़ी बस्तियों के लोगों के मुद्दे इनसे अलग हैं। वे सिर्फ मूलभूत सुविधाएं चाहते हैं।