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कैसी यह मजबूरी है? क्या अदालत ही ज़रूरी है?

कोरोना की रफ़्तार थमने का नाम नही ले रही, कोरोना का तांडव भयानक और भयानक होता जा रहा है, बच्चे, बूढ़े, जवान, मर्द हो या औरत कोई इसकी चपेट से बच नही सका है। जहाँ एक तरफ़ शमशानों में लोगों को जलाने की जगह नही मिल रही है तो वहीं दूसरी कब्रगाहों का हाल भी कुछ कम बुरा नही है, दुनिया के कई देशों में तो आलम यह है कि, सीक्रेट कब्रगाहों में (पेरू) लोगों को दफ़नाया जा रहा है। एक-एक कब्र में कई-कई लोग, बस मिट्टी के नीचे दबाए जा रहे हैं, कहीं अमेजन के जंगलों को काटकर क़ब्रगाह बनायी जा रही है तो कहीं ऐसे ही।

हिंदुस्तान का आलम यह है कि अभी उत्तर प्रदेश में यमुना नदी में कुछ शव यूँही तैरते हुए देखे गए, नदियों में शवों का विसर्जन काफ़ी समय से बंद है, लेकिन अचानक अभी दो चार रोज़ पहले दर्जन से भी ज़्यादा शव यमुना में तैरते देखे। शवों को इस तरह से तैरते देख, आस पास के लोग घबरा गए, उन्होंने तत्काल प्रशासन को इस बात की जानकारी दी, ख़ैर मामला अब प्रशासन के हाथों में है और बात यमुना के किनारे से निकल कर लखनऊ के दरबारों तक पहुँच चुकी है। सच्चाई क्या ही पता चलेगी आप भी जानते हो और हम भी।

दिल्ली का आलम यह है कि यहाँ हर 3 से 4 घंटे में एक व्यक्ति की मौत हो रही है, ध्यान रहे जो भी आँकडें आपके सामने पेश किए जा रहे है वह सब सरकारी हैं। सरकारी आँकड़ों की सच्चाई और उन्हें दर्ज करने का आलम यह है कि कब्रगाहों और शमशान घाटों के सामने अंतिम क्रियाओं के लिए लाइनें लगी हैं और सरकारी रजिस्टरों में केवल अभी 2-4 लाइनें ही भरी गयी हैं। सूबे के मुखिया का आलम ऐसा है कि वह अपने सारे कुकर्मों को भी केंद्र पर डालने की कोशिश में रहता है और केंद्र का आलम यह है कि वह अपने कुकृत्यों को मुख्यमंत्रियों पर डालकर अपनी इमेज को साफ़ करने की कोशिश में लगा रहता है।

दरअसल कंफ्यूजन इतनी पैदा कर दी गयी है कि आप समझ ही नही सकते हैं कि वास्तव में ज़िम्मेदार कौन है, अधिकारी, नेता, मुख्यमंत्री या फिर प्रधानमंत्री कौन है, पता नही। सब के सब एक दूसरे में घुसे हुए हैं। देश में ऑक्सिजन के लिए लोगों की जानें जा रही है, दिल्ली के अस्पतालों का आलम यह है कि यहाँ तो बल्क में अस्पतालों से वार्ड के वार्ड ख़ाली हो रहे है, कहीं एक साथ 12 लोग निपट जा रहे है तो कहीं एक साथ 20, जब कारण जानने की बात आयी तो पता चला की ऑक्सिजन की कमी की वज़ह से लोगों की जाने गयी हैं, दिल्ली के मुख्यमंत्री से जब इस मामले में बात करने की कोशिश की हुई तो उन्होंने बड़ी ही बेशर्मी से सारा का सारा ठीकरा केंद्र सरकार पर फ़ोड दिया।

इमेज बिल्डिंग में 822 करोड़ खर्च करने वाले ऑक्सिजन के मामले में नल्ले –
सोचिए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपनी और पार्टी की छवि को चमकाने के लिए पहले तीन महीनों में 150 करोड़ रुपए खर्च किए थे, बाद में यह धनराशि लगातार बढ़ती चली गयी और सरकारी आँकड़ों में यह ग्राफ़ 822 करोड़ तक दिखायी पड़ रहा है, यहाँ भी ध्यान रहे कि यह आँकड़ा सरकारी है और जैसा आप जानते ही है कि इस तरह के मामलों में सरकारें अतिरिक्त सावधानी बरतते हुए जब 10 खर्च करती हैं तब कहीं जाकर 1 लिखती हैं वो भी मजबूरी में।

अब ज़रा सोचिए जो नेता खुद की शकल को चमकाने के लिए 822 करोड़ खर्च कर सकते हैं वह राज्य में प्राणदायिनी ऑक्सिजन के लिए क्या कुछ नही कर सकते, अरे दान के लिए भीख माँगते हुए तुम्हारी ज़बान नही काँपती ? यह पैसे जिन्हें तुम अपने एशो-आराम पर उड़ा रहे हो वह इसी दिल्ली की जनता के हैं, अपनी ज़रूरतों से बचाकर साँसों के लिए इन्होंने चंदा दिया था तुम्हें ? ख़ैर इसका हिसाब तो आने वाला समय करेगा जो बचेगा वह देखेगा जो गया सो गया।

साँसों की लड़ाई कोर्ट रूम में –
जनता के सेवक सरकारों में, जो यह दावा कर रहे थे कि देश के लिए उन्हें अब और अपनी नींद को कम करना पड़ेगा, उनका नाम ही नारा बन गया है, देश की जनता ने उन्हें सर माथे पर बिठाया है तो उनकी जिम्मेदारियाँ भी बड़ी हैं आज वो सब मौन हैं, कल तक दुनिया को मेडिकल इक्विप्मेंट और ड्रग्स सप्लाई करने वाला देश आज दान की ऑक्सिजन की बाट जोह रहा है।

जैसे-तैसे जो जुगाड़ पानी हो भी रहा है वह भी राजनैतिक हीला-हवाली और लाल फ़ीताशाही के चक्कर में लेट-लतीफ़ी का सामना कर रहा है, साँसों की कालाबाज़ारी भी जमकर हो रही है। विचार करने का गंभीर विषय यह है कि जो कार्य सरकारों को करना था, उसे आज कोर्ट को करना पड़ रहा है। देश की सर्वोच्च न्यायालय को आदेश देना पड़ा कि एक कमेटी बनायी जाय जो पूरे देश में ऑक्सिजन सप्लाई को नियंत्रित करे।

ग़ौरतलब है कि इस कमेटी में देश के उन प्रतिष्ठित डाक्टरों को शामिल किया गया है जिनके हाथों में लोगों की जान बचाने का ज़िम्मा पहले से ही था, अब वही डाक्टर वह काम करेंगे जो प्रशासन को करना चाहिए था। कुल मिलाकर हम एक बात समझ सकते हैं कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की लोकशाही पूर्णतः ध्वस्त हो चुकी है।

आज न्याय पाने से लेकर यदि आपको साधारण किसी भी ज़रूरत को पाना है तो उसके लिए आपको माननीय सर्वोच्च न्यायालय तक पहुँच रखनी होगी, अन्यथा आप यह भूल जाइए कि आपके साथ इंसाफ़ हो सकता है।
—धर्मेंद्र सिंह