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क्यों नहीं सुलझते राज्यों के बीच सीमा विवाद


भारत में कई राज्यों के बीच सीमा विवाद है, जिनकी जड़ें औपनिवेशिक ब्रिटिश शासन में निहित है। परंतु जैसा खूनी संघर्ष असम और मिजोरम के बीच देखने को मिला वह भविष्य का भयावह रूप प्रदर्शित करता है। खूनी संघर्ष होने के बाद भी दोनों राज्यों के बीच विवाद कम होने का नाम नहीं ले रहा था। सोशल मीडिया ने इस विवाद के आग में घी का काम किया। अंततः मजबूर होकर गृह मंत्री अमित शाह जी को इसमें हस्तक्षेप करना पड़ा ।

असम और मिजोरम के बीच सीमा विवाद की जड़ ब्रिटिश काल के दो नोटिफिकेशन में निहित है। पहला 1875 का नोटीफिकेशन जिसे असम आधार मानता है। दूसरा 1933 का नोटिफिकेशन जिसके आधार पर मिजोरम सीमा पर अपना दावा करता है। 1887 में जब मिजोरम को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया, तो यह विवाद समय-समय पर उभरता रहा। परंतु इस बार इसका स्वरूप खूनी संघर्ष में परिणित हो गया।

अन्य राज्यों में भी है सीमा विवाद
वर्तमान में कई राज्यों के बीच सीमा विवाद आजादी के 75 वर्ष बाद भी बनी हुई है। जो आज भी राज्यों के बीच संबंधों में कभी-कभी नासूर सरदर्द दे जाती है।


असम और अरुणाचल के बीच विवाद

यह विवाद अत्यंत ही पुराना है, वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में मामला विचाराधीन है। असम नागालैंड विवाद यह मामला भी सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है परंतु समय-समय पर छोटी मोटी मुठभेड़ होती रहती हैं। असम मेघालय विवाद असम के 7 जिले मेघालय से सीमा बनाते हैं। इन जिलों के 12 विभिन्न जगहों पर दोनों राज्य अपना-अपना दावा करते हैं, इस कारण से समय-समय पर तनाव होता रहता है।


हरियाणा हिमाचल प्रदेश सीमा विवाद

हरियाणा दावा करता है कि परवाणू के कुछ भूमि जिस पर हिमाचल का कब्जा है वह वास्तविक में हरियाणा का भाग है। सर्वे ऑफ इंडिया भी इस बात की पुष्टि करता है।


लद्दाख और हिमाचल प्रदेश के बीच सीमा विवाद

सरचू में एक लद्दाखी पुलिस की चौकी है हिमाचल का ऐसा मानना है वह चौकी उनकी सीमा में आती है।


महाराष्ट्र और कर्नाटक सीमा विवाद

बेलगांव बीदर गुलबर्ग के 814 गांव जहां मराठी बोलने वालों की आबादी अधिक है, इन पर महाराष्ट्र द्वारा अपना अधिकार बताया जाता है। इस वर्ष फिर यह विवाद सुर्खियों में है, जबसे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री श्री उद्धव ठाकरे जी ने विवाद का समाधान होने तक इन जिलों को केंद्र शासित क्षेत्र घोषित करने की मांग की।

चुकी इन विवादों की नींव ब्रिटिश शासन की नीतियों में निहित है, जरूरी यह हो जाता है कि विवादों के ऐतिहासिक पृष्ठभूमि समझते हुए इनका सही प्रकार से समाधान किया जाए। जहां पूर्वोत्तर के विवाद जंगल और कबायली परंपराओं को ध्यान में रखते हुए समाधान करने की जरूरत है, वही बाकी राज्यों में सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा सही ढंग से सर्वे कर वास्तविक स्थिति पता लगाने की जरूरत है। चुकी अभी केंद्र में एक बहुमत वाली मजबूत सरकार है तो इन विवादों के समाधान की आशा बढ़ जाती है। अब जरूरत सभी राज्यों को विश्वास में लेते हुए स्थानीय लोगों को साथ लेकर आजादी के 75 वर्ष बाद भी बने हुए इन सीमा विवादों को स्थाई एवं शांतिपूर्ण ढंग से हल करने की है। क्योंकि यह विवाद कब खूनी संघर्ष में बदल जाए कहा नहीं जा सकता है।

(लेखक प्रवीण भारद्वाज लंदन प्रेस क्लब ब्रिटेन के मानद सदस्य हैं)