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क्या है नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और एनसीआर में अंतर

भारत में लगभग हर जगह पुराने शहर और नए शहर देखने को मिल जाते हैं। पूराना शहर अक्सर इतिहास और पुरानी परंपराओं को सहेजे दिखता है, इस शहर का एक ऐतिहासिक महत्व भी होता है। वहीं नए शहर में आधुनिक विकास और आज की जरूरतों के हिसाब से विकास दिखता है। क्या दिल्ली की कहानी भी कुछ ऐसी ही है, पुरानी और नई दिल्ली में क्या अंतर है। क्या यह दोनों अलग हैं और यह एनसीआर क्या है, आखिर इनको लेकर उलझन की स्थिति क्यों है।

दिल्ली शब्द एक है लेकिन मतलब अनेक
तो पहले दिल्ली और इस शब्द से संबंधित समस्या को ही समझते हैं। यह हर बड़े मेट्रो शहर की समस्या है कि कोई भी, उसके आसपास रहने वाला व्यक्ति भी, बाहर के लोगों को बताता है की वह भी वहीं का है। यानी जो व्यक्ति अपने आप को दिल्ली का रहने वाला बता रहा है, वह दिल्ली के किसी करीबी इलाके का भी हो सकता है। ऐसा ही कुछ मुंबई या कोलकाता को लेकर भी है। इसकी सबसे बड़ी वजह यही होती है कि, आसपास के इलाके यातायात और अन्य तौर पर मुख्य शहर से काफ़ी ज्यादा जुड़ चुके हैं।

बहुत ज़्यादा फैला हुआ है इलाका
शहर के क्षेत्र का फैलाव और तेज शहरीकरण इसकी प्रमुख वजह है। लेकिन दिल्ली के साथ कईं और बातें भी जुड़ी हुई हैं। दिल्ली का मूल क्षेत्र सीमित है, रिहायशी इलाके आसपास तो फैले लेकिन वहां की जमीन, कानूनी तौर पर दिल्ली राज्य की नहीं बल्कि पास के उत्तर प्रदेश या हरियाणा राज्य की थी। रोजगार के कारण लोग यहां इतना आवागमन करते हैं कि, दिल्ली से दूर रहने पर भी वह खुद को वहीं का बताते हैं।

शब्दों के अंतर को समझना है जरूरी
दिल्ली नाम के पीछे इसका इतिहास भी जिम्मेदार है। दिल्ली एक बहुत ही पुराना शहर है जो कई बार उजड़ा और बसा। सच कहें तो आज यह कई शहरों का मिलाजुला स्वरूप है और फैल कर आसपास के इलाकों को भी खुद के अंदर समेट चुका है। इसीलिए नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली, एनसीआर जैसे शब्दों के अंतर को समझना बहुत जरूरी है।

महाभारत से भी पहले का महत्व
दिल्ली का एक बहुत ही ऐतिहासिक महत्व है। यमुना नदी के किनारे बसा होना इसे सबसे खास बनाता है। इतिहास में इसके महाभारत काल से ही नहीं बल्कि, सिंधु घाटी सभ्यता के काल से भी जुड़े होने के प्रमाण मिले हैं। महाभारत के समय में इस शहर का नाम इंद्रप्रस्थ था, जिसे पांडवों ने बनाया था। इसके बाद भी यह कई बार उजड़ा, बसा, कभी उपक्षित रहा तो कभी फला फूला।

कैसे पड़ा होगा इसका नाम
कुछ इतिहासकार इसका संबंध प्राचीन राजा ढिल्लु से बताते हैं।   तो कुछ का यह मानना है कि दिल्ली शब्द दहलीज से बना है जिसका मतलब होता है चौखट। इसे सिंधु गंगा समभूमि के प्रवेश द्वार के तौर पर भी देखा जाता है। तो वहीं इसे ढीली और ढिलिका जैसे पुराने नामों से भी जोड़ा जाता है। इसके अलावा देखा जाए तो दिल्ली या दिल्लीका शब्द सबसे पहले उदयपुर से मिले शिलालेखों से भी मिला है, जोकि तकरीबन 1170 ईस्वी के आसपास के हैं।

कैसे बनी पुरानी दिल्ली
मध्यकाल में इस शहर का महत्व तब और ज्यादा बढ़ा जब बाहर के आक्रांताओं ने इसे दिल्ली सल्तनत के तौर पर पहचान दी। मुगलों ने इस शहर को बड़ा और महत्वपूर्ण ही नहीं बनाया बल्कि ऐतिहासिक इमारतों के जरिए इसे नई पहचान भी दी। 18 वीं सदी तक दिल्ली एक बहुत प्रमुख सांस्कृतिक और वाणिज्यिक केंद्र बन गया था और यही पुरानी संस्कृति बताने वाला इलाका पुरानी दिल्ली के तौर पर जाना जाता है।

नई दिल्ली का विकास
लेकिन 20वीं सदी में जब अंग्रेजों ने भारत की राजधानी को बदलकर कोलकाता से दिल्ली बनाया, तो उन्होंने अपने प्रशासनिक मकसदों को पूरा करने के लिए नई दिल्ली को बसाया। कनॉट प्लेस, संसद भवन, इंडिया गेट, राष्ट्रपति भवन, लोधी गार्डन आदि इसका हिस्सा थे। यहां काम करने वाले लोगों के लिए इसी के आसपास रिहायशी इलाके बने और फिर क्षेत्र का विस्तार होने लगा।

आजादी के बाद दिल्ली का इलाका एक केंद्र शासित क्षेत्र बना, इसके आसपास हरियाणा और उत्तर प्रदेश राज्य के इलाके जुड़े थे। बाद में पास के राज्यों के इलाके भी दिल्ली से काफी ज्यादा जुड़ गए। जैसे गुरुग्राम और गाजियाबाद के लोगों का दिल्ली रोजाना आना-जाना होने लगा और इस तरह से यह और अन्य इलाके दिल्ली से जुड़कर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र कहलाने लगे।

आशीष ठाकुर – हिमाचल प्रदेश