Corona और lockdown …ये दो ऐसे शब्द है जिन्हें हम पिछले 2 सालों से सिर्फ सुन नहीं रहे बल्कि इनका प्रभाव महसूस भी कर पा रहे हैं । Corona ने जहां वायरस के रूप में इंसान के इम्यूनिटी सिस्टम पर हमला कर उसे या तो कमजोर बना दिया या उसकी जान लेली । वैसे ही lockdown ने भी इंसानों की या रोजी रोटी छीन ली या उन्हें मरने पर मजबूर कर दिया । हालांकि सरकारों ने ना इस महामारी को लेकर कोई हाई लेवल की तैयारी की थी ना ही lockdown को लेकर । इसका खामियाजा भुगता आम जनता ने । फिर जब corona के आंकड़े कम होने लगे तो हीला हवाली इतनी हुई की हमने सोच लिया ना अब महामारी आएगी ना देश में बंदी । खैर जब प्लानिंग ही नहीं थी तो ये ढिलाई भारी तो पड़नी ही थी और हुआ भी वही । सबसे बड़ी बात है दुनिया के लिए corona से जंग में मिसाल बनने के दावे हमे ही ले डूबे । इस बार फिर से जंग का आगाज़ तो हुआ लेकिन हमने हथियार डाल दिए । उसके कारण ये हैं की हमारे पास न तो कोई नीति थी और जो थी वो चुनावी जंग के लिए थी । हालांकि चुनावी नीति भी फेल हो गई तो अब वापस से बात हो रही है corona की lockdown की । अब तक जबसे corona की दूसरी लहर भारत में आई है कई बार lockdown को लेकर अटकलें लगाई गई , यहां तक की हाई कोर्ट ने भी उत्तर प्रदेश सरकार से कहा की lockdown लगाया जाए पर इस पर विचार से परे चुनावी गणित चल रही थी । अब खेला खत्म तो lockdown शुरू अब बंदिशों के नाम पर धीरे धीरे सभी राज्यों में lockdown लगाया जा रहा है । कहीं पर 1 हफ्ता कहीं पर 2 हफ्ता तो कहीं पर 3 । लेकिन इस सब के बीच सवाल ये है कि वक्त रहते आम जनता को झकझोर कर रख देने वाली ये महामारी और इसके कारण लगाया जाने वाला lockdown , इस पर पहले से मंथन कर लिया जाता तो आज क्या हालत ऐसे होते ???
लोकतंत्र जनता के लिए होता है लेकिन यहां तो लोकतंत्र में प्राथमिकता ही जनता नहीं रही । परिणाम में ये हुआ corona से आम जनता मर रही है और अब जब ये महामारी बिल्कुल फैल चुकी है, बाजारों में इसी बीमारी के नाम पर मजबूरी का फायदा उठाने वाले गिद्ध घूम रहे हैं । तब आ रही है lockdown की याद । 2020 की तरह ही बिना प्लानिंग बिना तैयारी के एक बार फिर से corona से त्रस्त आम जनता झेलेगी lockdown की मार ।
मेघना सचदेवा (स्टेट हेड दिल्ली)