• Thu. Apr 25th, 2024

हम अक्सर घर में बैठे-बैठे यह चर्चा करते रहते हैं कि, अगर रुपया मजबूत होता तो देश को कितना लाभ मिलता। भारत से मंगाई जा रही चीजें सस्ती हो जाएंगी, यह कुछ हद तक सही है। रुपए और डॉलर की कीमत बराबर हो जाने से आम लोगों के लिए सामान सस्ता हो जाएगा। हालांकि सब कुछ बेहतर हो जाएगा ऐसा भी नहीं है। यही कारण है कि कई देश अपनी मुद्रा को कमजोर ही रखना चाहते हैं, भले ही वह कितने भी विकसित हो। इसका एक सबसे बड़ा उदाहरण है जापान।

इसलिए मुद्रा की कीमत बहुत ज्यादा होने का मतलब यह नहीं है कि उस देश की अर्थव्यवस्था सबसे मजबूत है। आज हम चर्चा करेंगे कि आखिर डॉलर और रुपए के बराबर होने के फायदे- नुकसान क्या है। क्या कभी डॉलर के समान थी रुपए की कीमत? भारत ने रुपए को डॉलर से कमजोर क्यों किया और बाकी देश भी ऐसा क्यों करते हैं।

क्या होगा फायदा

जब आयात सस्ता होता है तो वस्तु व सेवाएं खरीदना भी सस्ता हो जाता है। लग्जरी वस्तुएं भी सस्ती हो जाएंगी। उदाहरण के तौर पर आईफोन आपको केवल ₹650 में मिल जाएगा। आयात सस्ता तो मतलब कच्चा तेल और प्राकृतिक गैस भी सस्ती हो जाएगी। जिन भी कामों के लिए इन सब का इस्तेमाल होता है उन सभी के दाम नीचे आ जाएंगे। विदेश में जाकर पढ़ाई करना सस्ता हो जाएगा। विदेशी पर्यटन लाखों नहीं हजारों में हो जाएगा।

क्या होगा नुकसान

आयात अगर सस्ता होगा तो निर्यात महंगा हो जाएगा। विदेशी कंपनियों का भारत आने का सबसे बड़ा कारण यही होता है कि यहां उन्हें सस्ता श्रम बल मिल जाता है। अगर डॉलर और रुपए सामान्य हो जाते है तो, विदेशी कंपनियों को यहां उतना ही खर्च करना पड़ेगा जितना कि वह अमेरिका या किसी और विकसित देश में कर रही हैं। ऐसे में वह कंपनियां अपने कारखानों को, यहां से उठाकर ऐसे देश में लेकर चले जाएंगे जहां श्रम बल सस्ता है। जीडीपी का 60 फ़ीसदी हिस्सा यहां से आता है और भारत में 27 फ़ीसदी रोजगार यहीं से मिलता है। आईटी क्षेत्र इसका एक बड़ा भाग है।

आईटी क्षेत्र विदेशी कंपनियों की सेवाओं पर निर्भर है। अगर $1, ₹1 के बराबर हो गया तो उन कंपनियों का यहां निवेश करने का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। कई आईटी कंपनियां खतरे में पड़ जाएंगी। कई सारे कॉल सेंटर बंद हो जाएंगी और बेरोजगारी का स्तर एकदम ऊपर भागेगा। जब विदेशी पैसा भारत में नहीं आएगा तो, अंत में अर्थव्यवस्था तेजी से नीचे की ओर गिरेगी। यही कारण है कि चीन, जापान जैसे विकसित देश भी अपनी मुद्रा की कीमत बहुत ऊपर नहीं जाने देते। जापान की मुद्रा अभी भारत से भी काफी कमजोर है, लेकिन क्या जापान को एक पिछड़ा देश कहा जा सकता है, बिल्कुल नहीं।

क्या है निष्कर्ष

किसी भी बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था के लिए मुद्रा की कीमत बहुत अधिक होना अच्छा नहीं है। खास तौर पर उस तरह के देश जो निर्यात से पैसा बना रहे हों। भारत को विदेशी निवेश की अभी काफी जरूरत है। रुपए की कीमत बढ़ने से यह निवेश खतरे में पड़ सकता है। इसलिए कई अर्थशास्त्री यह भी मानते हैं कि भारत को अपनी मुद्रा का और ज़्यादा अवमूल्यन करना चाहिए। बता दें कि मुद्रा की अवमूल्यनता सरकार खुद करती है, ताकि विदेशी कंपनियां देश में निवेश करती रहें।

आशीष ठाकुर – हिमाचल प्रदेश