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कोरोना- इस भयावह स्थिति का जिम्मेदार कौन?

आज covid-19 से पूरी दुनिया परेशान है, अगर भारत की बात करें तो विश्व के सर्वाधिक मामले और सरल भाषा में कहूँ तो विश्व का तकरीबन आधे से ज्यादा मामले प्रतिदिन भारत में सामने आ रहे है। मरने वालों की संख्या भी असीमित है। ऐसा नहीं है कि कोई जाति, धर्म, वर्ग, मज़हब का कोई भी व्यक्ति कोरोना की मार से बचा है। इस बार लपेटे में हर कोई है। मरने वालों और प्रभावित लोगों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। पिछले कुछ दिनों से तो हालात यह है कि लोग कोरोना से कम ऑक्सीजन की कमी से ज्यादा मर रहे है।

ऐसे में सवाल यह खड़ा होता है कि इस भयावह स्थिति का जिम्मेदार कौन है, भारत सरकार, विभिन्न प्रदेशों की सरकारें या पीड़ित वर्ग यानी की देश की आम जनता खुद ? ज्यादातर या कहूँ कि हर कोई आज की तारीख़ में प्रदेश सरकारों और केंद्र सरकार को इसका जिम्मेदार मान रही है और देख लेने की धमकी सी दे रही है। प्रारंभिक तौर पर मुझे भी ऐसा ही लग रहा था कि कोरोना के इस भीषण दुष्प्रभाव की जिम्मेदार सभी सरकारें ही है चाहे फिर वह केंद्र की सरकार हो या फिर विभिन्न राज्यों की सरकारें हो लेकिन यह वास्तविकता में कितना सत्य है इस पर जब गंभीरता से विचार किया तो 1 ऊँगली तो सरकारों की तरफ गयी लेकिन बाकी की चारों के निशाने पर मैं खुद दिखाई पड़ता हूँ।

2020 का कोरोना –
वर्ष 2020 के प्रारंभ में जब भारत में कोरोना आया तो उसका कारण कौन था ? ज़ाहिर है कि हम खुद थे, पूरी दुनिया के मीडिया चैनल कोरोना से बचाव के उपायों और कारगर तरीकों के बारे में इंसानियत पर आ रहे खतरें के बारे में लोगों को सचेत कर रहे थे लेकिन फिर भी दूसरे देशों से हिंदुस्तान आने वाले लोगों के कानों में जू नहीं रेंगी, किसी ने भी यह ज़हमत नहीं उठायी कि वह किसी यूरोपीय, अफ़्रीकी या एशियाई देश का दौरा करके आये हैं तो खुद को आइसोलेट करे और प्रभाव दिखने पर जाँच करवाएं तथा जिन लोगों के संपर्क में वह आये हैं उनके बारे में विस्तृत जानकारी भारत सरकार को दें। अनुपालन किसी से नहीं हुआ अंत में स्थिति भयावह हुई और भारत सरकार को सब कुछ किनारे रखते हुए युद्धस्तर पर लगना पड़ा और अंत में लॉक डाउन एक मात्र विकल्प बनकर सामने आया। खैर भारत सरकार ने समूचे सूबे में लॉक डाउन की घोषणा की और धीरे-धीरे कोरोना को नियंत्रित कर लिया गया।

अक्टूबर-नवंबर से मास्क और नियमों को किया दरकिनार –
भारत सरकार के सभी संचार माध्यम, एजेंसियां, डॉक्टर्स लगातार विभिन्न संचार माध्यमों के जरिये लोगों को यह समझाने की पूरी कोशिश करते रहे कि मास्क जरूरी है, सोशल डिस्टेंसिंग जरूरी है परन्तु ज्यादातर लोग पार्टियों, पब्लिक गेदरिंग्स में कुछ इस तरह से व्यस्त हुए जैसे वह मंगल गृह से लौटे थे और धरती की सुख-सुविधाओं का इस्तेमाल करने, उनका आनंद लेने के लिए उनके पास सीमित समय ही शेष है। यदि वह इस समय में इसका सम्पूर्ण दोहन नहीं कर पाए तो या तो संसाधन समाप्त हो जायेंगे या वे। संसाधन तो समाप्त नहीं हुए लेकिन हाँ उनके समाप्त होने के आसार प्रबल हो चुके है।

सरकारें कितनी दोषी-
जिस तरह से भारत में कोरोना का विस्फोट हुआ है उसके लिए हम अगर यह कहें की राज्य और केंद्र सरकारों का दोष नहीं है तो वह भी गलत होगा, जिम्मेदार वह भी है परन्तु यह रेसियो 70 और 30 का हो तो शायद ज्यादा सार्थक लगे। 70 प्रतिशत विस्फोट का कारण है लोग स्वयं है और खासकर मिडिल क्लास या इसको वर्गीकृत किया जाए तो अपर मिडिल क्लास को मैं जिम्मेदार मानूंगा। सबसे ज्यादा पार्टियां, सबसे ज्यादा ट्रैवेल और सबसे ज्यादा लापरवाहियां इसी वर्ग के द्वारा हुई है। लोग चौराहों पर गप्पे मारने के लिए जब भी इक्कट्ठे हुए किसी के भी पास मास्क नहीं होता था और अगर किसी के पास होता भी था तो वह बस पुलिस से बचने का साधन मात्र था, वर्दी देखने पर लोगों के चेहरे पर मास्क लगे हैं वो सही तरीके से तो कभी लगे ही नहीं। मास्क ठुड्डियों की शोभा बढ़ा रहे थे। हाँ भी सत्य है कि भारत सरकार और प्रदेश सरकारों के अधिकारियों को इस बात का इल्म होना चाहिए था कि वह इजरायल और न्यूजीलैंड जैसे देशों में नहीं रह रहे है, वह भारत के लोगों के बीच में हैं और जिन्हे केवल और केवल डंडे की ही भाषा समझ आती है।

चुनाव कितने बड़े अपराधी –
पिछले साल से लेकर अब तक 5 राज्यों के चुनाव हुए, यह एक लोकतान्त्रिक प्रक्रिया है इसका पालन होना चाहिए था लेकिन एक जिम्मेदार राष्ट्र के तौर पर भारत सरकार, चुनाव आयोग और सम्पूर्ण विपक्षी दलों को साथ बैठकर इसकी वैकल्पिक व्यस्थाओं के बारे में विचार करना चाहिए था, यह एक अच्छा मौका हो सकता था जब हिंदुस्तान में ऑनलाइन चुनाव कराये जा सकते थे, वर्चुअल रैलियां की जा सकती थी और टेक्नोलॉजी का अच्छा इस्तेमाल कर विश्व को एक अच्छा मैसेज दे सकता था। लेकिन सरकार ने लोकतांत्रिक मर्यादाओं का पालन करना अधिक आवश्यक समझा और पाँचों राज्यों में सभी राजनैतिक दलों ने जमकर रैलियां की, अंधाधुंध भीड़ जमा कराई गयी और जैसा हिंदुस्तान में हमेशा से होता आ रहा है 500 रूपये और एक जून का खाना नास्ता दीजिये भीड़ आपके साथ पहुँच जाती है वही हुआ। हज़ारों हज़ार लोग एक जगह एकत्रित हुए, न किसी ने मास्क का ध्यान रखा सोशल डिस्टेंसिंग क्या होती है वह तो ऐसा लग रहा था जैसे आदिकाल की बात रही हो। नतीजा सभी राज्यों का हाल आपके सामने है, बंगाल के ताजा आंकड़े कहते हैं जिन-जिन क्षेत्रों में रैलियां हुई है वहां हर दूसरा आदमी कोरोना पॉजिटिव है और जहाँ से दूर रैलियां हुई हैं वहां की आबादी में हर तीसरा या चौथा आदमी।

कैसे करें बचाव –
बचाव की बात बहुत दूर की है ऐसा नहीं है, जो चले गए हैं उन्हें वापस नहीं लाया जा सकता है लेकिन जो हैं उन्हें हम आसानी से बचा सकते हैं। करना क्या होगा यह जानना बेहद आवश्यक है ? हमें अपने बेसिक्स की तरफ फिर से लौटने की जरूरत है। हमारे जेब में सेनेटाइजर फिर से वापस रखना होगा, मुंह पर मास्क सिंगल या डबल जरूरत के हिसाब से लगाना होगा। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हमें करना ही होगा। अगर हर एक हिंदुस्तानी ऐसा करता है तो कहीं जाकर हम 20-25 दिनों में प्रतिदिन आने वाले मरीजों की संख्या में गिरावट महसूस कर सकेंगे।

हमें होम आइसोलेशन पर ज्यादा फोकस होना पड़ेगा, योग और व्यायाम नियमित तौर पर करना ही होगा। अस्पताल के बेड्स और कृत्रिम ऑक्सीजन उन लोगों के लिए छोड़ दीजिये जिन्हे वास्तव में उसकी आवश्यकता है। घर पर रहिये इम्युनिटी बूस्टर का जम के इस्तेमाल कीजिये, खुद की इम्युनिटी को बूस्ट करने के प्रयास कीजिये और कोशिश कीजिये की कम से कम लोगों के संपर्क में आए और अगर कोई आता है तो सम्पूर्ण सावधानी बरतें। कोरोना की चेन दवा से नहीं सावधानी से टूटेगी।

वैक्सीनेशन कितना संभव –
भारत को इजरायल या न्यूजीलैंड जैसा कम आबादी वाला देश नहीं है। हालाँकि आबादी ज्यादा है तो रिसोर्सेस भी ज्यादा हैं लेकिन फिर क्या 130 करोड़ लोगों का वैक्सीनेशन इतनी आसान प्रक्रिया है। शायद नहीं। इतनी जल्दी हम देश की सम्पूर्ण आबादी को वैक्सीनेट नहीं कर सकते हैं, हाँ यह अवश्य हो सकता है कि हम एक तरफ तेजी से वैक्सीनेशन भी करें लेकिन अपने बेसिक्स को बिना भूले। मैं और मेरे दोस्त 2 बार कोरोना पॉजिटिव हो चुके हैं लेकिन होम आइसोलेशन और डॉक्टरों की मदद से हम सब ठीक हो गए और आज स्वस्थ हैं। लेकिन हमनें इस दौरान सुपरमैंन बनने की बजाये आम जनता बनना ज्यादा उचित समझा। दूसरे के अनुभवों को आत्मसात कीजिये और स्वस्थ रहिये।

…. धर्मेंद्र सिंह