• Thu. Apr 25th, 2024

मास्क, मुखोटा और पत्रकारिता, आज के हालातों से जूझती जनता

देश की आबो हवा खराब सी हो चुकी है….घर, बाहर हर जगह मुंह पर मास्क लगाना जरूरी सा हो गया है । ये मास्क इस ज़हरीली हवा से कितना और कब तक लोगों को बचा पाएगा कुछ कहा नहीं जा सकता । अब तो हालात ये हैं कि कोई कहीं मिल जाए तो मास्क में पहचानना मुश्किल हो जाता है । लेकिन उन लोगों का क्या जो मास्क से भी ज़्यादा बड़े मुखौटे पहनते हैं ? लोगों के लिए आवाज़ बुलंद करने के नाम पर बड़े बड़े टीवी चैनलों पर तू तू मैं मैं करते हैं ….आखिर पत्रकारिता का चोला पहन कर और मुखौटे के पीछे रह के किस वायरस से बचने की कोशिश की जा रही है ?
शायद ये वायरस उसी सिस्टम का ठेकेदार है जिस सिस्टम को तो कोसने का जिम्मा इन तथाकथित पत्रकारों ने उठा लिए लेकिन मजाल है कि कोई ठेकेदार तक पहुंच भी पाए ! ये सिस्टम तो खुद इतना उलझा हुआ है कि इसे सुलझाने वाला खुद इस सिस्टम की आबो हवा में घुट कर मर जाए । खैर इन मुखौटे वालों का कुछ नहीं होगा ये अब वायरस की वैक्सीन समझ गए हैं और वो है बस बात बात पर पाकिस्तान को दुश्मन देश कहना और चाइना पर हमारे बेईमान सिस्टम कि नाकामियों का भार डाल देना । मतलब कुछ नहीं इनकी बातों का पर सबसे पहले और सबसे सटीक और सबसे सही खबर का डंका तो ऐसे बजाते हैं कि बस खबर अगर इंसान होती ना खुद अपने मुंह पर इन लोगों से बचने के लिए मास्क लगा लेती ! बड़ी बड़ी बातें और स्क्रीन पर चमकने कि चाह इन्हे इतना मजबूर कर देते हैं कि वाकई रोज़ी रोटी कि मजबूरी का हवाला देकर ये जनता की कमाई डकार जाने वालों के साथ मिल जाते हैं ।
अपने आप को ये जनता का मसीहा बता देते हैं और उसी जनता को ये कहते हैं कि लो तुम भी मुखौटा पहन लो हम तुम्हारे साथ है तुम्हारी आवाज़ हैं । कहते हैं आवाज़ की ताक़त बहुत बड़ी ताकत होती है लेकिन जनाब जब ताकत का गलत इस्तेमाल किया जाए तो क्या ? आज इसी मुखौटे के चलते वोही जनता जो इनके जाल में फंस जाती है मास्क लगाकर भी सुरक्षित नहीं है । इनका ये मुखौटा ना होता तो ये अपनी आवाज़ ठेकेदार नहीं जनता के लिए बुलंद करते ….आज ये सवाल कर पाते कि वेंटिलेटर पर पड़े सिस्टम के लिए के लिए ऑक्सीजन मिलेगी या उसके लिए भी हम इंतजार करते रहेंगे और उसकी सांसे रुक जाएगी ! खैर ये मुखौटा इन्हे आज के हालातों से बचा पाएगा क्योंकि अब तो सभी को सभी से खतरा है ।

-मेघना सचदेवा