मैं सूर्यपुत्री तवी नदी हूं। कभी जो अविरल अनन्य धारा के रूप में बहा करती थी, जो जम्मू की पहचान थी आज खुद अपनी पहचान के लिए तरस रही हूं। मनुष्य की लालच ने मां समान पवित्र तवी को भी नहीं छोड़ा। अमृत सी मेरी धारा प्रदूषण एवं कीटनाशकों के कारण विष बनने की ओर अग्रसर है।
मेरी कहानी
मुझे तोही, सूर्यपुत्री, तपी, तवी के विभिन्न नामों से जाना जाता है। विष्णुधर्मोत्तर पुराण में मुझे सूर्यपुत्री के नाम से वर्णित किया गया है । कहा जाता है कि जब एक संत ने इस क्षेत्र के कल्याण के लिए सूर्य की आराधना की तो उसे सूर्य देव के आशीर्वाद से पुत्र की प्राप्ति हुई जिसे तोसी भास्कर कहा गया, जिसका मतलब होता है सूर्य की पुत्री। दुर्गा स्तुति में मुझे तपि नाम से भी जाना जाता है। प्राचीन कथाओं के अनुसार बासुक नाग जो काफी बीमार थे, उन्होंने अपने पुत्रों को कहा है जो उनकी बीमारी के लिए पवित्र जल लेकर आएगा वही उसे अपना उत्तराधिकारी बनाएंगे। भैरव देवता जो उनके पुत्र थे वह कैलाश जाकर तभी को जम्मू लेकर आए थे।
शहर के कूड़ो से सिकुड़ती तवी

पूरे जम्मू शहर से निकला कूड़ा करकट जिस प्रकार तवी नदी के किनारे पर जमा किया जा रहा है कहीं ना कहीं इन कूड़े के ढेरों ने तवी के जल क्षेत्र को सिकुड़ने का काम किया जहां एक और तवी का जल क्षेत्र सिकुड़ता जा रहा है वही इसके किनारे अवैध निर्माणों ने स्थिति और भी विकट कर दी है। आधुनिकता के नामों पर सड़कों, इमारतों और अवैध निर्माणों ने इस पवित्र तवी को दूषित कर दिया है। गर्मियों में तो यह प्रदूषित नाले रूप में नजर आती है।
दूषित होता जल

फैक्ट्रियों, घरों से निकल रहा प्रदूषित जल मैं मेरे अमृत समान जल को एक दूषित नाले के रूप में परिणित कर दिया है। यह मानव यह नहीं जानते मेरा दूषित होना कहीं ना कहीं इनके स्वास्थ्य एवं जीवन पड़ी प्रतिकूल प्रभाव डालने लगा है। मेरे जल जो जम्मू के सात लाख से अधिक लोगों का प्यास बुझाता है आज खुद स्वच्छ जल के लिए तरस रहा है। जल में जरूरी जैविक ऑक्सीजन मांग जिसकी मात्रा 2 एमजी/ली होनी चाहिए वो 6.2 एमजी/ली है, जो गंभीर स्थिति को बताने के लिए पर्याप्त है।
कृत्रिम झील ने किया बेड़ा गर्क

हम ये क्यूं भूल जाते हैं की नदियों को कृत्रिम रूप से नहीं प्राकृतिक रूप से ही निर्मल और पवित्र रखा जा सकता है। 2009 से मेरे एक भाग में मेरे स्वच्छता और सुंदरता के नाम पर एक कृत्रिम झील का निर्माण किया जा रहा। परंतु करोड़ों रुपए खर्च करने पर भी स्थिति पहले से और भी विकट हो गई है। कृत्रिम झील ने ना केवल मेरी बहती अविरल धारा को प्रभावित किया है बल्कि जग मार्ग में अवरोध भी उत्पन्न किया है। इतने साल गुजर जाने के बाद भी यह अभी भी पूर्ण रूप से तैयार भी नहीं हुआ।
अब तो जाग जाओ

नदियां जो प्राकृतिक वातावरण का सबसे प्रमुख अंग है। जिन पर लाखों जलीय जीवो एवं मानव का जीवन निर्भर है। जरूरत कृत्रिमता की नहीं इनको प्राकृतिक रूप से संजोगने की है। उनके सुंदरता का नाम पर अरबों रुपए खर्च तो कर दिए गए हैं परंतु स्थिति सुधारने के बजाय पहले से और भी विकट हो गई है। जरूरत यह समझने की है की यह नदियां अविरल है अतः इनको इनके वास्तविक रूप में रहने देने की जरूरत है। आधुनिकता के चाह ने मानव को अंधा कर दिया है, अवैध निर्माण, फैक्ट्रियों का गंदा पानी शहरों का गंदा पानी, सभी इन नदियों को प्रभावित कर रहा है। विकास जरूरी है परंतु विकास के नाम पर प्रकृति की इन देन को अगर हम खत्म करते जाएंगे। वह दिन दूर नहीं जब मानव के जीवन पर ही संकट उत्पन्न हो जाएगा।

हम नदियां तो बस देना जानती हैं सदैव से हमने जलीय जीव मांगों को अपना सहारा ही दिया। अगर माना हमें हमारे प्राकृतिक रूप में संजोग कर रखेंगे हम भी एक माता के रूप में हमेशा अपनी ममता के आंचल मैं उनकी सुरक्षा करेंगे। क्योंकि जब भी मां के आंचल की छांव दूर होती है तो उत्तराखंड जैसी त्रासदी सामने आती है।
प्रवीण भारद्वाज (लेखक लंदन प्रेस क्लब के मानद सदस्य और एनवायरमेन्ट एन्ड सोशल डेवलोपमेन्ट एसोसिएशन के सदस्य हैं)
