कोरोना की पहली लहर के गुजर जाने के बाद क्या भारत से यह चूक हुई कि उसने दूसरी लहर के खतरे की अनदेखी की। जबकि यूरोप तब दूसरी लहर का सामना कर रहा था। नेचर में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया कि पिछले साल सितंबर में पीक गुजरने के बाद कोरोना संक्रमण में कमी से भारत में यह धारण बन गई कि उसने कोरोना को मात दे दी है। इसके बाद भीड़ वाले कार्यक्रमों का आयोजन बढ़ने लगा। चुनावी रैलियों से लेकर धार्मिक आयोजनों में कोरोना व्यवहार की उपेक्षा की गई।
नेचर ने इस रिपोर्ट में अनेक महामारी विशेषज्ञों के बयानों के आधार पर यह नतीजा निकाला है। इसमें प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी के वायरोलॉजिस्ट रामानन लक्ष्मीनारायण ने कहा है कि देश ने यह मान लिया कि उसने कोरोना को मात दे दी है। अशोका यूनिवर्सिटी के वायरलॉजिस्ट शाहिद जमील की इस टिप्पणी को शामिल किया गया है कि इस समय भारत की स्थिति करीब-करीब वैसी ही है जैसी पिछले साल ब्राजील में थी। रिपोर्ट के अनुसार फरवरी में कोरोना संक्रमण के न्यूनतम स्तर पर आने और दिल्ली, चेन्नई, मुंबई जैसे कई शहरों में 50 फीसदी या इससे ज्यादा लोगों में एंटीबॉडीज पाए जाने पर यह मान लिया गया कि अब हर्ड इम्यूनिटी पैदा हो रही है। इसलिए संक्रमण की दूसरी लहर पहले से ज्यादा गंभीर नहीं हो सकती।
-सतीश कुमार, चेन्नई।