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जलवायु परिवर्तन पर आईपीसीसी रिपोर्ट 2021: समय से पहले खतरे की आहट

  • जलवायु परिवर्तन का खतरा पहले से अधिक गहराया।
  • आईपीसीसी रिर्पोट 2021 में कई चिंताजनक तथ्यों का किया गया है जिक्र।
  • अगर कार्बन उत्सर्जन पर अंकुश नहीं लगाया गया तो 2100 ईस्वी तक 5.4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है पृथ्वी का तापमान।
  • मौसम में हो रहा चरम बदलाव है इसी के संकेतक।

जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी संगठन आईपीसीसी की रिपोर्ट 2021 भविष्य की भयावह एवं चिंताजनक स्थिति को दर्शाती है। यह इस श्रृंखला की छठी रिपोर्ट है। वैज्ञानिकों के पैनल ने इस रिपोर्ट में स्पष्ट कहा है कि जलवायु परिवर्तन का असर अब पूरे विश्व में साफ देखा जा सकता है। जैसे जर्मनी और चीन में आया भयावह बाढ़, ठंडे प्रदेश सर्बिया में लग रही जंगल की आग या पूरे विश्व में बदल रहे बारिश और मौसम का पैटर्न , ये सभी जलवायु परिवर्तन के ही संकेत हैं। परिवर्तन अब इतने गहरा गए हैं कि अगर हम कार्बन उत्सर्जन में सुधार कर भी इन्हे फिर से परिवर्तित करना चाहे तो सैकड़ों वर्ष लग जाएंगे।

क्या है आईपीसीसी
यह जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी वैज्ञानिक निकाय है। यह संयुक्त राष्ट्र का आधिकारिक पैनल है जो जलवायु में हो रहे परिवर्तन एवं ग्रीन हाउस गैसों का ध्यान रखता है। इस संस्था को 2009 में शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया था। जलवायु परिवर्तन के संभावित खतरे को देखते हुए 1988 में इसकी स्थापना की गई थी। यह जलवायु परिवर्तन पर 1992 से रिपोर्ट प्रकाशित कर रहा है।

जलवायु परिवर्तन के लिए मानव जाति है जिम्मेवार।
संयुक्त राष्ट्र के आईपीसीसी ने स्पष्ट चेतावनी देते हुए कहा है कि पृथ्वी की औसत तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी बस अब एक दशक दूर है। यह बढ़ोतरी सोच से पहले नजर आ रही है। जिसके लिए मानव जाति ही जिम्मेदार है। इस परिवर्तन ने पूरी मानव जाति के साथ साथ पृथ्वी पर सभी प्रकार के जीवन पर संकट उत्पन्न कर दिया है। मानव द्वारा अनियंत्रित कार्बन एवं ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में स्थिति को बहुत ही विकट कर दिया है। समुद्र का बढ़ता जलस्तर, ग्लेशियरों का पिघलना, समुद्र का बढ़ता अम्लीकरण, जंगलों में लगातार लग रही आग, प्राकृतिक आपदाओं का बदलता है और बढ़ता स्वरूप, यह सभी पृथ्वी के जलवायु में हो रहे दुखद परिवर्तन को दर्शा रहे हैं। जिसकी जिम्मेदारी हम सब पर बनती है। पैनल की नेतृत्वकर्ता वेलेरी मैसेन डेलोमोट मैं स्पष्ट कहा “पृथ्वी का वातावरण लगातार बदल रहा है और सभी संकेतक स्पष्ट रूप से इशारा करते हैं कि मानव इसका सबसे प्रमुख कारण है।”

खतरा अब हमारे दरवाजे पर खड़ा है।
इस इस रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है सभी संकेतक इशारा करते हैं कि अब जलवायु आपातकाल की स्थिति है। समुद्र का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है ग्लेशियर पिघल रहे हैं प्राकृतिक आपदाओं ने लाखों लोगों की जान लेनी शुरू कर दी है, लाखों लोग प्राकृतिक आपदाओं के कारण शरणार्थी बनने को मजबूर हो रहे हैं। विभिन्न प्रकार की बीमारियां, कृषि पर प्रतिकूल प्रभाव, हीटवेव गर्मी का लंबा मौसम। यह तो जलवायु परिवर्तन की शुरुआत है। रिपोर्ट में कहा गया है तापमान में हो रहे लगातार वृद्धि ने पृथ्वी के जल चक्र को विशेष रूप से प्रभावित करना शुरू कर दिया है जो आकस्मिक तीव्र बारिश तो कभी सूखे के रूप में नजर आ रहा है। समुद्रों के जलस्तर में जहां वृद्धि हो रही है वही हो रहे उनके अम्लीकरण और जल में ऑक्सीजन के स्तर में कमी ने पूरे समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को खतरे में डाल दिया है।

कोप 26 से पहले यह रिपोर्ट आना विश्व कि नेताओं के लिए आंखें खोलने का काम करेगा। अब जरूरत विश्व के सभी नेताओं को साथ आकर एक स्पष्ट एक कठोर जलवायु संबंधी लक्ष्य निर्धारण करने की है।और उस लक्ष्य को पाने के लिए नीति निर्माण स्तर पर सभी देशों में ग्रीन पॉलिसी और हरित ऊर्जा पर ध्यान देने की अधिक से अधिक जरूरत है। साथ ही हम सबकी जिम्मेदारी भी बनती है अपने स्तर पर कार्बन के उत्सर्जन को जितना कम हो सके उतना करें। बगैर मतलब के ईंधन का खर्च ना करें। जंगल कार्बन सिंक कार्य करते हैं, यह जलवायु में अतिरिक्त कार्बन को अवशोषित कर लेते हैं। अब सभी नीति निर्माताओं को जंगल को बचाते हुए विकास कार्य को आगे बढ़ाने की जरूरत है। तब जाकर ही हम अपने पृथ्वी के वातावरण को पुनः स्थायित्व प्रदान कर पाएंगे।

(लेखक प्रवीण भारद्वाज लंदन प्रेस क्लब के सदस्य हैं)