पिछले पाँच साल की तैयारियों के रिज़ल्ट आने कल से ही शुरू हो चुके हैं, अमित शाह, नरेंद्र मोदी, ममता बनर्जी और हुडदंगियों के बीच जो सबसे बड़ी दीवाल थी, चुनाव की दीवाल वह ढह चुकी है। ममता बनर्जी सत्ता में वापस आ चुकी है, दीदी ने बंगाल में जीत की हैट्रिक लगाई है तो ज़ाहिर है की जश्न भी तो शानदार होना चाहिए। पिछले एक साल से बंगाल का वह वर्ग जिसका काम केवल लूट-पाट, हुड-दंग और बलात्कार ही था वह अपने आकाओं के कहने पर ख़ामोश हो चुके थे, पुलिस भी ऐक्टिव दिखायी पड़ रही थी क्योंकि अधिकारियों को भी भ्रम था की उनकी संरक्षक सत्ता में रहेंगी या जाएँगी।
पुलिस के दिमाग़ में कहीं न कहीं यह था कि कैसे भी करके इतना नंबर तो बना के रखना है कि यदि सत्ता परिवर्तन हो तो अपने नए आकाओं के सामने खड़े होने की हैसियत बाक़ी रहे, नए आका चुनने में ज़्यादा मशक़्क़त न करना पड़े, लेकिन अब उन्हें भी वह डर खतम हो चुका है। उन्हें एहसास हो चुका है की दिल्ली के हाथों से सत्ता दूर ही रहेगी पाँच साल और, उनकी आका वही रहेंगी जो पिछले एक दशक से भी ज़्यादा से चली आ रही है। इसीलिए अधिकारियों ने भी अपनी आँखें बंद कर ली है।
बंगाल जल रहा है, नेता हँस रहे –
जिस बंगाल में कभी स्वामी विवेकानंद की वाणी गूंजती, महर्षि अरविंद के शब्द उच्चारित होते थे आज उसी बंगाल में लोगों के हाथों में हथियार हैं। लोग अपनों के ही खून के प्यासे हो चुके हैं। दुकाने लूटी जा रही है, लोगों को उनके घरों में घुस के मारा जा रहा है। मुख्य विपक्षी पार्टी के दफ़्तर जलाए जा रहे है, वहाँ तोड़ फोड़ की जा रही है। पार्टी विशेष से ताल्लुक़ रखने वाली भीड़ उन्मादी हो रही है और लोगों की आज़ादी तार-तार हो रही है। पुलिसकर्मी खामोशी से तमाशबीन से अधिक कुछ नही बचे है क्योंकि उनके आका अपनी वफ़ादारी साबित करने में जुटे हुए हैं।
बंगाल एक बार फिर से जल रहा है, राजनैतिक भूख और वर्चस्व की लड़ाई में मासूमों की ज़िंदगी दांव पर लगी है, केंद्रीय सरकार अपनी हार का मंथन करने में व्यस्त है और सरकार जीत का जश्न मनाने में। किसी को बंगाल की आम जनता का होश नही है। बीते रोज़ प्रधानमंत्री ने सूबे के राज्यपाल से मामले की गम्भीरता पर बात की लेकिन उससे क्या कुछ बदल सकता है, शायद नही।
सेल्यूलर बनाम सेल्यूलर –
बंगाल में पिछले १० साल से शासन व्यवस्था सम्भाल रही ममता बनर्जी खुद को देश की सबसे बड़ी सेल्यूलर नेता बताती हैं लेकिन आँकडें उनके सभी दावों को उतना ही खोखला बताते हैं, जितनी हिंदुस्तान की स्वास्थ्य व्यवस्था को कोरोना। आल इंडिया तृणमूल कोंग्रेस के कार्यकर्ता भूखे भेड़ियों की तरह से जब मर्ज़ी तब हाथों में नंगी तलवारें लिए किसी के भी घर, मकान, दुकान पर हमला बोल देते हैं और मौत का नंगा नाच करते हैं। मुख्यमंत्री जाँच का आस्वाशासन देती हैं लेकिन होता कभी कुछ भी नही। अपराधी लगातार अपराधी बनते जा रहे हैं और पीड़ित लगातार पीड़ित।
-धर्मेंद्र सिंह