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मंथन: किसने कहा भाजपा बंगाल चुनाव हारी है?

पश्चिम बंगाल चुनाव के रिजल्ट सामने आ चुके है 213 सीट जीत कर एक बार फिर से ममता बनर्जी ने यह साबित कर दिया है कि बंगाल की जनता का भरोसा अभी भी उनके ऊपर बराबर बरक़रार है। लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि भाजपा अपने मकसद में पूर्णतः सफल रही है। जिस तरह से भाजपा ने पिछले पांच सालों में अपनी उपस्थिति को बंगाल में दर्ज करवाया है और वोट प्रतिशत को मजबूत किया है उससे एक बात तो साबित हो चुकी है कि ममता दीदी की राजनीति अब सपाट नहीं चलने वाली है।

बंगाल में अब वो सब कुछ वह नहीं कर सकेंगी जो अब तक वह करती आयी है, विधानसभा में ढंग के विपक्ष का सामना उन्हें करना पड़ेगा क्योंकि भाजपा के पास विपक्ष में बैठने का आधी सदी से भी ज्यादा का अनुभव है और भाजपा की सफलता का श्रेय भी उसके इंतज़ार को ही जाता है। लिहाज़ा इस बार तृणमूल कांग्रेस और उसकी प्रमुख को सत्ता चलाने के लिए भले संघर्ष न करना पड़े लेकिन हाँ सदन एकपक्षीय तो नहीं चलेगा।

तृणमूल कांग्रेस से कहीं अधिक मजबूत हुई है भाजपा-
कई विश्लेषकों, भाजपा के आलोचकों को ऐसा लगता है कि भाजपा के विजय रथ को ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में रोकने में सफल हुई है। जिन्हे भी ऐसा लगता है शायद उनकी आंकड़ों पर पकड़ कमजोर रही है या पकड़ कमजोर है। अगर हम पिछले 3 विधानसभा चुनावों पर नज़र डाले तो लगातार भाजपा अपने उद्देश्य में सफल रही है और हर बार पिछले चुनावों की अपेक्षा भारतीय जनता पार्टी पश्चिम बंगाल में और अधिक मजबूत होकर ही उभरी है।

2011 से लेकर अब तक के अगर विधान सभा चुनावों पर एक सरसरी नज़र डालें तो पिक्चर काफी साफ़ हो जाती है कि भाजपा ने किस तरह से हर चुनाव में खुद को मजबूत और मजबूत किया है।

2011 के चुनावों की यदि बात करें तो भारतीय जनता पार्टी ने कुल 289 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिनमें से 285 सीटों पर तो भारतीय जनता पार्टी की ज़मानत तक जब्त हो गयी थी। कुल 4 सीटें ऐसी थी जहाँ भाजपा लड़ाई में उतर सकी थी जीतने की बात बहुत दूर है। 2011 के चुनाव में भाजपा का खाता भी नहीं खुल सका था। अब यदि हम वोट प्रतिशत या फिर वोट शेयर की बात करें तो भारतीय जनता पार्टी को कुल जमा केवल 4.06 प्रतिशत ही वोट मिले थे जबकि सी.पी.एम. को तब 30.08 प्रतिशत और सी.पी.एम. ने 2011 के विधान सभा चुनावों में कुल 40 सीटों पर जीत दर्ज की थी।

जबकि हम इंडियन नेशनल कांग्रेस की बात करें तो 2011 के विधान सभा चुनावों में कांग्रेस का वोट शेयर प्रतिशत में था 9.09 कुल 66 सीटों पर कांग्रेस ने चुनाव लड़ा था जिनमें से 42 सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली थी। अब अगर तृणमूल कांग्रेस की बात करें तो उसने 226 सीटों पर चुनाव लड़ा 184 सीटों पर जीत दर्ज की कुल वोट प्रतिशत की बात करें तो 38.93 रहा और जहाँ पर पार्टी के कैंडिडेट्स जीते है या लड़े हैं उन सीटों पर तृणमूल कांग्रेस को 50 प्रतिशत से भी ज्यादा वोट मिले है।
2016 के चुनाव –
यह तो रही 2011 के चुनावों की बात, अब अगर हम 2016 के चुनावों पर नज़र डालें तो भारतीय जनता पार्टी 2014 का आम चुनाव जीत कर केंद्रीय सत्ता में आ चुकी थी उसके बाद 2016 के विधान सभा में पार्टी खुद को आज़मा रही थी, भाजपा ने प्रदेश की कुल 291 सीटों पर बिना किसी गठबंधन के चुनाव लड़ा लेकिन सूबे में पार्टी का कोई चेहरा न होने की वजह से पार्टी को बड़े नुकसान का सामना करना पड़ा। मोदी लहर बंगाल के लोक सभा के चुनावों में तो चली लेकिन विधान सभा में मोदी का जादू पूर्णतः फेल रहा। जिन 291 सीटों पर भाजपा ने चुनाव लड़ा उनमें से 263 सीटों पर तो पार्टी की ज़मानत ही जब्त हो गयी लेकिन 2011 की अपेक्षा पार्टी ने स्थिति में सुधार किया, पार्टी का न केवल बंगाल में खाता ही खुला बल्कि पार्टी के 3 कैंडिडेट चुनाव भी जीते। अब अगर वोट प्रतिशत की बात करें तो पार्टी के वोट शेयर में भी ठीक-ठाक इज़ाफ़ा हुआ और पहले जहाँ 4 प्रतिशत पर रुकने वाली भाजपा का कुल वोट शेयर बढ़ कर पहुँच गया 10.16 प्रतिशत और जहाँ-जहाँ भाजपा के कैंडिडेट्स रहे उन सीट्स पर भाजपा को मिलने वाली वोट शेयर में भी इज़ाफ़ा हुआ और वह भी कुल वोट का 10.28 प्रतिशत पहुँच गया।

भले ही भाजपा को हार का सामना करना पड़ा लेकिन जैसा कि सर्वविदित है भाजपा का अतीत सबसे ज्यादा समय विपक्ष में बैठने वाली पार्टी का रहा है तो उसे आकड़ों से खेलना उनपर चुपचाप काम करना बेहद अच्छी तरह से आता है। लिहाजा पार्टी नेतृत्त्व ने अमित शाह के नेतृत्त्व में लगातार बंगाल पर फोकस किया और 2021 के चुनावों की तैयारियां जोर-शोर से शुरू कर दी।
यह तो रही भाजपा की बात अब बात कर लेते है 2016 के चुनावों में अन्य पार्टियों की तो सी.पी.एम. कुल 148 सीटों पर चुनाव लड़ी, सीटें कम हुई पहले की अपेक्षा और इस बार सी.पी.एम. को महज 26 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था। वोट प्रतिशत की बात करें तो उसमें भी गिरावट दर्ज की गयी और यह सिमटकर पहुँच गया कुल जमा 19.75%, सीटों की बात करें तो जिन -जिन सीटों पर पार्टी ने अपने कैंडिडेट्स उतारे वहां पर मिलने वाला वोट शेयर था 38.62% . यह तो रही सी.पी.एम. की बात अब बात कर लेते हैं इंडियन नॅशनल कांग्रेस की तो 92 सीटों पर यह कुल चुनाव लड़ते हैं 44 सीटों पर जीत दर्ज करते हैं वोट प्रतिशत में इजाफा होता है और इन्हे कुल वोट प्रतिशत जो मिलता है वो है 12.25% और यदि हम केवल उन सीटों की बात करें जहाँ इनके ही कैंडिडेट्स मैदान में थे तो वहां पर कुल वोट शेयर इनका होता है 40.37% . इसमें कोई शक नहीं है कि कांग्रेस ने खुद को पहले की अपेक्षा मजबूत किया था।

खैर अब बात उस पार्टी की करते है जिसके सर पर ताज बंधा तो इस बार भी ताज तृणमूल कांग्रेस के सर ही सजा। तो ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस कुल 293 सीटों पर इस बार चुनाव लड़ती है, 211 सीटों पर विजय मिलती है पार्टी को और ममता बनर्जी लगातार दूसरी बार बंगाल की मुख्यमंत्री बन जाती है। कुल वोट शेयर की बात करें तो पार्टी को मिलते है 44.91% कर उन सीटों की बात करें जहाँ-जहाँ पार्टी के कैंडिडेट्स मैदान में थे तो थोड़ा सा इजाफा वोट शेयर में होता है और कुल वोट शेयर प्रतिशत में बढ़कर हो जाता है 45.18% . कुल मिलाकर अगर हम देखे तो आल इंडिया तृणमूल कांग्रेस को फायदा ही मिला है पार्टी को कोई ख़ास नुकसान होता दिखाई नहीं पड़ता है।

इसके यदि कारण की बात करें तो जिस तरह से ममता बनर्जी ने खुद को बंगाल से बाहर निकालकर लगातार भाजपा और मोदी को सार्वजानिक मंचों पर घेरने की कोशिश की है उसने उनकी छवि को बंगाल में और अधिक मजबूत किया है। कहीं न कहीं बंगाल की जनता ने उन्हें बंगाली अस्मिता और गौरव से जोड़कर देखना शुरू कर दिया था। यही कारण था कि भाजपा ने जब 2021 के चुनावों की तैयारी शुरू की तो उसने सबसे पहले ममता बनर्जी की पार्टी से ही नेताओं को तोड़ना शुरू किया। भाजपा का उद्देश्य यहाँ पर साफ़ दिखाई पड़ता है कि वह ममता को उनके ही गढ़ में घेरने की कोशिश कर रही है और बंगालियों के मन मष्तिष्क से उनकी छवि को पूर्णतः शिफ्ट डिलीट मारने की कोशिश की गयी है। हम यह भी कह सकते है कि कहीं न कहीं भाजपा को सफलता मिली भी है इसमें।


अब बात करते है 2021 के चुनावों की –
2021 के चुनावों की यदि बात करें तो यह पूरा का पूरा चुनाव भाजपा बनाम तृणमूल ही लड़ा गया है। यह पूरा चुनाव बंगाल की बेटी बनाम गुजराती हो गया था। प्रदेश बनाम केंद्र भी इसको देखा गया है। भाजपा प्रारम्भ से ही इस कोशिश में थी कि प्रदेश में मुख्यमंत्री के लिए उनके पास कोई साफ़-सुथरा चेहरा हो जिसे दिखाकर वोट माँगा जाए लेकिन भाजपा को सफलता नहीं मिल सकी अंत में कहीं न कहीं भाजपा को उसका नुकसान उठाना भी पड़ा है।

खैर रिजल्ट पर बात करते है –

तृणमूल कांग्रेस को 2021 के चुनावों में पिछले चुनाव की अपेक्षा इस बार 2 सीटों की बढ़त हासिल हुई और कुल विधायकों की संख्या 211 से बढ़कर 213 पहुँच गयी। भाजपा ने अपने चिर-परिचित अंदाज में प्रदर्शन किया हालाँकि तृणमूल कांग्रेस को भले नुकसान पहुंचाने में वह सफल न हुई हो लेकिन उसने अन्य सभी दलों का सूपड़ा पूरी तरह से साफ़ कर दिया और 3 सीटों से उठकर सीधे भारतीय जनता पार्टी 77 सीटों पर जीत दर्ज कर लेती है। सी.पी.एम. या फिर इंडियन नेशनल कांग्रेस की बात करें या अन्य पार्टिओं की बात करें तो ज्यादातर का तो खाता भी इस बार सूबे में नहीं खुलता है। अब यदि भाजपा के वोट प्रतिशत की बात करें तो वह 10 प्रतिशत से बढ़कर 38.13 प्रतिशत हो गया है।

ज़ाहिर है कि भाजपा ने 2011 से लेकर अब यानी की 2021 बीते 10 सालों में केवल और केवल भूमि बनायी है और जिस अंदाज में भाजपा काम करती है उसने उसी अंदाज में एक-एक करके अपने सभी विरोधियों को किनारे कर दिया है। अब यदि बंगाल के परिप्रेक्ष्य में बात करें तो बंगाल में भाजपा के विजय रथ को रोकने वाला केवल एक दल बचा है तृणमूल कांग्रेस जिसे 2026 के चुनाव में किनारे करते हुए किसी भी सूरत में भगवा फहराने की पूरी कोशिश अब आरएसएस और भाजपा संगठन करेगा।

इसीलिए हम यह कह सकते हैं कि दरअसल भाजपा बंगाल चुनाव हारी नहीं जीती ही है।
–धर्मेंद्र सिंह