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जानिए इस राज्य में बंदरों की आबादी घटने का कारण

उत्तराखंड में पहाड़ से लेकर मैदान तक बंदरों का आतंक फैला हुआ है। इन्होंने खेती-बाड़ी को इतना नुकसान पहुंचाया है कि पहाड़ों से पलायन का एक बड़ा कारण बंदर भी माने जाते हैं। एक अच्छी खबर देखने को मिल रही है कि इनकी आबादी अब थमने लगी है। 2015 में जब बंदरों की गणना की गई तो इनकी आबादी 1 लाख 46 हज़ार पाई गई। लेकिन, 2021 की गणना में 1 लाख 10 हज़ार बंदर पाए गए।

बंदरों की गणना कम होने का कारण नसबंदी माना जा रहा है। बता दें कि प्रदेश में चिड़ियापुर, अल्मोड़ा और रानीबाग यह तीन जगह बनाई गई हैं, जहां पर बंदरों की नसबंदी होती है। वहीं वन प्रमुख अनूप मलिक से मिली जानकारी के अनुसार, अभी तक 50 हज़ार से ज्यादा बंदरों की नसबंदी की जा चुकी है। वन विभाग अब चमोली, पिथौरागढ़ समेत तीन और जगहों पर बंदर बाड़ा बनाने जा रहा है।

चीफ वाइल्ड लाइफ वॉर्डन समीर सिन्हा के अनुसार, विशेषज्ञ डॉक्टर भी कहते हैं कि बंदरों की जनसंख्या को थामने का सबसे सटीक उपाय नसबंदी ही है। वरिष्ठ पशु चिकित्सक डॉ दिप्ती अरोडा ने कहा कि लेप्रोस्कोपिक सर्जरी के जरिए होने वाली नसबंदी से बंदरों को भी कोई दिक्कत नहीं होती है। चिकित्सकों का कहना है कि आने वाले समय में इसके और भी अच्छे परिणाम देखने को मिल सकते हैं।

उत्तराखंड में खेती-बाड़ी के लिए बंदर काफी ज्यादा बड़ी मुसीबत बन चुके हैं, जिसके कारण खुद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को भी पिछले दिनों इनकी रोकथाम के लिए, वन विभाग को अलग से निर्देश जारी करने पड़े। यही कारण है कि अब वन विभाग इस कार्यक्रम को मिशन मोड में लेने जा रहा है। हालांकि बंदरों की आबादी का घटना पशुओं के संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण करने वाले लोगों और संस्थाओं का नजरिया आबादी घटने को लेकर काफी अलग है।

आशीष ठाकुर – हिमाचल प्रदेश