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मद्रास हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को अंग्रेजी में भेजे गए पत्र का जवाब हिंदी में देने से मना किया, जताई आपत्ति

राज्य सरकारें जिस भाषा में केंद्र से कुछ पूछती हैं केंद्र को उसी भाषा में जवाब देना चाहिए. मद्रास हाई कोर्ट की मदुरई पीठ का यह फैसला तमिलनाडु के एक सांसद द्वारा दायर की गई जनहित याचिका पर आया। सांसद एस वेंकटेश ने अपनी याचिका में बताया कि उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्रालय को अंग्रेजी में एक पत्र लिख कर निवेदन किया था कि सरकार के ग्रुप बी और ग्रुप सी श्रेणियों में 780 खाली पड़े पदों को भरने के लिए पुदुचेरी में कम से कम एक परीक्षा केंद्र बनाया जाए। याचिका पर सुनवाई करने के बाद अदालत ने केंद्र के आचरण को गलत ठहराया और कहा कि जब चिट्ठी अंग्रेजी में लिखी गई थी तो केंद्र को चिट्ठी का जवाब भी अंग्रेजी में ही देना चाहिए था। राज्यों के अधिकार जस्टिस एन किरूबाकरण और जस्टिस एम दुरईस्वामी की पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 350 के तहत किसी को भी उन सभी भाषाओं में सरकार को ज्ञापन देने का अधिकार है जिन्हें केंद्र और राज्य सरकारें मानती हों।अधिनियम के भाग तीन के तहत आधिकारिक कामों के लिए हिंदी और अंग्रेजी दोनों का इस्तेमाल करना चाहिए. भारत की कोई राष्ट्रीय भाषा नहीं है। संविधान की धारा 343 देवनागरी लिपि में लिखी गई हिंदी को केंद्र सरकार की आधिकारिक भाषा का दर्जा जरूर देती है. भाषाओं को सम्मान हालांकि संविधान राज्यों को अपनी अपनी आधिकारिक भाषा चुनने का अधिकार देता है।

सतीश कुमार (ऑपरेशन हेड, साउथ इंडिया)