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ऐसे जीतेगा भारत कोरोना से?

कोरोना महामारी अपने भयानक रूप में हमारे सामने खड़ी है। ऐसे में चुनावी/राजनीतिक रैलियों का समर्थन यदि आप करते हैं तो निश्चित ही आप में शर्म का एक कण भी नहीं बचा है। सुबह हज़ारों-लाखों की भीड़ इकट्ठा कराने वाले हमारे प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री और पार्टियों के नेता/कार्यकर्ता, शाम को मास्क लगा कर, दो गज की दूरी रखने का ऐलान करते हैं। पश्चिम बंगाल की हालत चुनाव खत्म होते ही बदतर हो जाएगी, ये हम सबको पता है। किसी भी बात का ध्यान न रखते हुए देश के प्रधानमंत्री / गृहमंत्री एवं राज्य की मुख्यमंत्री ने लाखों लोगों की ज़िंदगी को मज़ाक बना दिया है।

दूसरी ओर हरिद्वार में हो रहे कुम्भ मेले की बात की जाए तो आस्था से ओतप्रोत भक्तों के धर्म पर आँच आने लगती है। कई लोगों का कहना है कि इनके साथ तबलीगी जमात जैसा सलूक क्यूँ न किया जाए या कोरोना/मानव बॉम्ब क्यूँ न कहा जाए तो अलग अलग कारण बताए गए।


ज्ञात हो सुप्रीम कोर्ट ने तबलीगी जमात से जुड़े केस में केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी। चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और वी. रामासुब्रह्मण्यम की बेंच ने गुरुवार, 8 अक्टूबर 2020 को इस मामले में सुनवाई की थी. सरकार के हलफनामे को ‘जवाब देने से बचने वाला’ और ‘निर्लज्ज’ करार दिया. कहा कि याचिकाकर्ताओं ने कुछ टीवी चैनलों पर जो आरोप लगाए थे, उसका इसमें कोई जिक्र नहीं है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने कहा-
“सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव की बजाय अतिरिक्त सचिव ने यह हलफनामा दाखिल किया है. इसमें जमात के मुद्दे पर अनावश्यक और बेतुकी बातें कही गई हैं. आप कोर्ट के साथ इस तरह से व्यवहार नहीं कर सकते. यह बहुत अपमानजनक है. इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।”

सुनवाई के दौरान जमात की ओर से पेश वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा है कि याचिकाकर्ता बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी का हनन करने की कोशिश कर रहे हैं. इस पर चीफ जस्टिस ने केंद्र की आलोचना करते हुए कहा-
“आप लोगों (सरकार) की तरह हर किसी को बोलने का अधिकार है. वैसे भी हाल के दिनों में बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के इस अधिकार का सबसे अधिक दुरुपयोग हुआ है।”
और अगर बात की जाए हरिद्वार में हो रहे कुंभ मेले की तो यहाँ कहा गया कि बहुत सी व्यवस्थाएं की गई हैं जैसे चैक पॉइंट्स ताकि कोई भी पॉजिटिव व्यक्ति नगरीय सीमा में प्रवेश न करे, इसके लिए उसे कम से कम 72 घंटे पहले हुई कोरोना जाँच रिपोर्ट ही दिखानी होगी। इसके अलावा श्रद्धालु वहाँ भी जाँच करा सकते हैं। और भी कई विभिन्न तरह की व्यवस्थाओं का ज़िक्र किया गया परंतु क्या सिर्फ़ व्यवस्थाओं से संक्रमण रुक जाता है? रविवार, 11 अप्रैल को हरिद्वार में 400 से ज्यादा नए कोरोना केस सामने आए।इसमें अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी सहित जूना अखाड़े के करमा गिरी और जूना अखाड़े के नितिन गिरी भी शामिल हैं। कुंभ मेला आईजी संजय गुंज्याल ने बताया है कि 12 अप्रैल को महाकुंभ का सोमवती अमावस्या का दूसरा शाही स्नान, 13 अप्रैल को नव संवत्सर का स्नान और 14 अप्रैल को बैसाखी का तीसरा शाही स्नान है। सोमवार, 12 अप्रैल को पिछले 24 घंटे के दौरान हरिद्वार में 408 कोरोना पेशेंट मिले। सोमवार को गृह सचिव आनंद वर्धन और पर्यटन सचिव दिलीप जावलकर की कोरोना जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आई है।

शाही स्नान से पहले जब कुंभ मेला आईजी संजय गुंज्याल से पत्रकारों की बात हुई तो उन्होंने कहा कि, “हम लोगों से लगातार लोगों से कोविड नियमों के पालन करने की अपील कर रहे हैं लेकिन भारी भीड़ के कारण यह व्यावहारिक रूप से असंभव है, खासकर घाटों पर लोगों से सामाजिक दूरी जैसे नियम का पालन करा पाना बहुत ज्यादा मुश्किल है। लोग बिना मास्क लगाए मेले में नजर आ रहे हैं।”

और यदि वास्तविकता का ध्यान रखते हुए देखा जाए तो 12 अप्रैल को सरकारी आँकड़ों के हिसाब से 31 लाख लोगों ने शाही स्नान किया। तो क्या 31 लाख लोगों की रिपोर्ट का ध्यान रख पाना मुमकिन है? मुझे तो नहीं लगता आप ज़रूर बताइयेगा।
तबलीगी जमात के लोगों को तो कोर्ट ने बरी कर दिया, सिर्फ़ कुछ मीडिया के लोगों ने उस मुद्दे को सांप्रदायिक रंग दिया, आपको दूसरे धर्म के बारे में भड़काया, चैनल की टी आर पी बढ़ायी, और आपने बुरा बोलने करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। व्यवस्थाओं को ताक पर रखते हुए आज आपके धर्म के लोगों की वजह से महामारी फैल रही है तो तु तु मैं मैं में वक़्त न गवाएँ। ग़लत को ग़लत कहें और अपना ज़मीर बचाए रखें।


जो मुझसे पूछ रहे हैं कि क्या किया जाए तो सरकार जानती है कि लॉकडाउन इलाज नहीं है और इस तरह के आयोजन से संक्रमण बढ़ेगा ही। तो कुंभ नहीं भी होता तो फ़र्क़ नहीं पड़ता, धर्म, संस्कृति और रीति रिवाज़ के होने के लिए इंसान का होना ज़रूरी है, आप इंसान को ख़त्म किये दे रहे हो, क्या बचा पाओगे? मास्क पहनना, हाथ धोना, हाथ से मुँह, नाक को न छूना, दूरी बनाए रखना कोई बहुत कठिन काम नहीं है पर आज के समय के लिए सबसे बड़े और ज़रूरी काम हैं। इन सब के अलावा जो हम कर सकते हैं वो ये कि जिसकी जैसी मदद कर पाएं करें। किसी से बात कर लें, शायद उसे अच्छा लगेगा। किसी भूखे को खाना खिला दें। सोशल मीडिया की मदद से या संपर्कों की मदद से ज़रूरतमंद के लिए प्लाज़्मा की व्यवस्था करा दें। ये हमारे लिए बहुत है। हम सरकारें मंदिर/मस्जिद, धर्म/जात जैसे मुद्दों के लिए चुनते हैं तो स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी ज़रूरतों की हमें ख़ुद व्यवस्था करनी होगी।

खैर, मसानों पर न तो जगह है न लकड़ी। सड़कों पर लाशें जल रहीं हैं। लोग अपनों के चेहरे देखने को तरस रहे हैं। अपने पाप धोने के लिए आप शाही स्नान तो कर लेंगे परन्तु आप के कारण किसी की जान जाती है तो उस पाप का क्या? और किसी एक की नहीं कितनों की ही जान जा रही हैं, जो बच रहा है वो इलाज़ के खर्चे में कंगाल हुआ जा रहा है, उनकी बद्दुआएँ आसमाँ में दूषित हवा बनकर उड़ रही हैं। ऐसे में राँझणा पिक्चर का एक डायलॉग याद आता है, जिसे हम सभी को गाँठ बांध लेना चाहिए!


“दुनिया की किसी गंगा में, किसी दरगाह के किसी धागे में वो ताक़त नहीं जो इंसान को इंसान का कत्ल माफ़ करे!! जाओ कुछ करो!! मुझे नहीं पता क्या करो, लेकिन यहाँ गंगा किनारे मुक्ति मिलने से तो रही मेरे दोस्त!!”

-प्रद्युम्न पालीवाल