• Wed. Apr 24th, 2024

भारत: भाषा, धर्म, संस्कृति से ऊपर उठकर महामारी में सेवा और सहयोग

भारत की खूबसूरती है अलग रंग, अलग भाषा, अलग संस्कृति सब एक ही देश में । इस खूबसूरती को पूरी दुनिया अपनी नजरों से देख पाती है । लेकिन हम भारतवासी शायद देख कर भी नहीं देखना चाहते । होली , दिवाली , ईद ये त्योहार हर बार हमे भाईचारे का संदेश देते हैं लेकिन है फिर भी बरगलाने वाली हुकूमत के इशारों पर नफरती जिन्न को हम बुलावा दे देते हैं । आपके घर के आस पास अलग अलग धर्म के लोग रहते होंगे और शायद आप भी उनके त्योहारों को मनाते होंगे साथ मिल कर रहते भी होंगे। उसके बावजूद उन ताकतों को जो आपको अलग कर राज करना चाहती हैं आप कैसे बढ़ावा देते है ये किसी से भी छुपा नही। महामारी के इस दौर में अपना पराया, हिंदू मुस्लिम सब कुछ बस एक बेबस इंसान बन कर रह गए हैं । वो इंसान जो बस सांसे मिल जाए तो जिंदा रहेगा । अगर मर भी गया तो हिंदू को कंधा देने के लिए 4 हिंदू भाई होंगे या नहीं कोई गारंटी नहीं , कोई मुस्लिम अगर मर गया तो कोई दफनाने आएगा भी या नही कोई कुछ नही कह सकता । हालांकि हर रोज़ सामने आ रही तस्वीरें ये बताती हैं की इंसान बस सांसों का मोहताज है । किसी को जीना नसीब हो रहा है तो किसी को सही से मरना भी नसीब नही हो रहा । वो धर्म, वो जाति का भेद आज अस्पतालो में किसी को बेड नहीं दिला रहा, ये महामारी ना किसी रंग भेद से आई हैं ना किसी को अपनी चपेट में लेने से पहले पूछती है कि तू कौनसी जाति का है । हां लेकिन हम साथ मिल कर इंसानियत की राह पर चल कर इसे मात जरूर दे सकते हैं । नफरत की आग फैलाने वाले तो आज भी सक्रिय हैं । वो मौका खोज रहें है कि फिर इंसानियत को कैसे हराया जाए , फिर कैसे हिंदू मुस्लिम को लड़ाया जाए , फिर कैसे जनता को मुद्दों से भटकाकर लड़ाई की आग में झोंक दिया जाए । एक प्रायोजित नफरती कैंपेन को अंजाम भले ही ये लोग देते हैं पर हम आज जो हालात देख रहे हैं अगर आज भी ये भेदभाव की पट्टी ना उतारी हमने तो इसे कलयुग बनाने में हम ही जिम्मेदार होंगे । इस महामारी की कोई दवाई नही है , ये महामारी अपनों को अपनों से दूर कर रही है अगर इस वक्त भी इंसानियत ना रही तो बेवक्त सबका मरना तय है । किसी ने कहा है ” धर्म का मतलब ना ग्रंथ , ना वेद पाठ, कुरान है ….धर्म है सच्चाई और मानवता का कल्याण हैं ” ।

मेघना सचदेवा