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हॉकी में भारत की जीत के मायने

  • 41 वर्ष बाद भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने ओलंपिक में जीता पदक।
  • महिला हॉकी पहली बार पहुंची ओलंपिक सेमीफाइनल में।
  • दिखी सुनहरे भविष्य की राह।


रेफरी द्वारा मैच समाप्त होने की घोषणा होते ही, जैसे ही परिणाम 5-4 से भारत के पक्ष में आया। पूरा भारत एक साथ जीत की भावना की नदी में खुशी के गोते लगाने लगा। हम क्रिकेट कि नहीं हमारे राष्ट्रीय खेल हॉकी की बात कर रहे हैं। वर्षों बाद पूरा देश एक साथ एक स्वर में हॉकी के लिए प्रार्थना कर रहा था, दुआ मांग रहा था। कहीं जीत की खुशी आंखों में आंसू बनकर टपक रहे थे, तो कहीं यह जीत की शोर में शंखनाद कर रहा था। पूरा भारत सालों बाद हॉकी के लिए एक साथ खड़ा था।
भारत ने जर्मनी को हराकर ओलंपिक हॉकी का कांस्य पदक जीता। भारत के लिए यह सिर्फ कांस्य पदक नहीं है यह एक वैसे संजीवनी बूटी है जिसने मृतप्राय हॉकी को वापस जीवन प्रदान कर दिया। अगर भारत के खेल पर नजर डालें तो इस बार ओलंपिक में भारत एक चैंपियन की तरह खेला है। जहां भारतीय खिलाड़ी गोल करने में आगे नजर आएं, वही श्रीजस की गोलकीपिंग की पूरे विश्व ने तारीफ की। वह एक ऐसी दीवार साबित हुए जिसको भेदना विपक्षी खेमे के लिए हमेशा ही मुश्किल रहा। कोच रीड ने जिस प्रकार इस टीम का साथ दिया वह काबिले तारीफ है। इस जीत से उत्साहित होकर स्वयं प्रधानमंत्री ने पूरी टीम के साथ फोन पर बात की, जो इस जीत के महत्व को बताने के लिए काफी है।

महिला हॉकी टीम का भी प्रदर्शन रहा शानदार
कोच मारिन के नेतृत्व में भारतीय महिला हॉकी टीम ने पहली बार ओलंपिक मे सेमीफाइनल तक पहुंचने में कामयाबी हासिल की। भले ही सेमीफाइनल में भारत 4-3 से ब्रिटेन से हार गया हो परंतु पूरे ओलंपिक मैच में भारतीय महिला हॉकी टीम का प्रदर्शन शानदार रहा। जिस प्रकार टीम खेली वह सुनहरे भविष्य को इंगित करता है। प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय कैप्टन रानी रामपाल एवं पूरी टीम से बात करते हुए कहा “आप के प्रदर्शन पर हमें गर्व है हार जीत चलती रहती है एक चीज याद रखी जाएगी वह है आपका शानदार प्रदर्शन।” प्रधानमंत्री का इस प्रकार का आत्मीय संबोधन खिलाड़ियों को सकारात्मक ऊर्जा देती है।

रहा है हॉकी में भारत का स्वर्णिम इतिहास
ओलंपिक में भारतीय हॉकी आठ स्वर्ण पदक जीत चुकी है। 1928 में पहली बार ओलंपिक में गोल्ड से शुरुआत कर, 1960 तक भारतीय हॉकी टीम ओलंपिक में अजय रहे और लगातार 6 गोल्ड मेडल प्राप्त किए। मेजर ध्यानचंद ने अपने खेल से हॉकी को जिस ऊंचाई पर पहुंचाया वह आज भी किसी अन्य देश के लिए दूर की कौड़ी ही है।

भारतीय पुरुष और महिला हॉकी का शानदार प्रदर्शन वापस उसी स्वर्ण युग की उम्मीद जगाता है जब भारत वैश्विक हॉकी का सिरमौर हुआ करता था। जीत में हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जब कोई भी भारतीय हॉकी को स्पॉन्सर करने को तैयार नहीं था तो उड़ीसा सरकार ने महिला एवं पुरुष हॉकी का साथ दिया। अब जरूरत इस जीत इस उत्साह को आगे बनाए रखने की है और खिलाड़ियों को सभी जरूरी सुविधाएं प्रदान हो। और हम भारत को हॉकी के उसी ऊंचाई पर देख पाएं, जहां मेजर ध्यानचंद ने इसे पहुंचाया था।
(लेखक प्रवीण भारद्वाज लंदन प्रेस क्लब ब्रिटेन के मानद सदस्य हैं)