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आखिर क्यों बिछाया गया सबसे ऊंचे रेल पुल पर सिर्फ़ एक ही ट्रैक

भारत में दुनिया का सबसे ऊंचा रेल पुल बनकर तैयार हो चुका है। भारतीय रेलवे अक्सर इसकी खूबसूरत तस्वीरें साझा करता रहता है। यह पुल केंद्रशाषित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले में चेनाब नदी के ऊपर बना हुआ है, जिसकी ऊंचाई 321 मीटर है। देखा जाए तो इसकी ऊंचाई फ्रांस की राजधानी पेरिस के प्रमुख पर्यटन स्थल आइफिल टावर से भी ज़्यादा है।

आइफिल टावर लगभग 276 मीटर ऊंचा है। इस पुल के निर्माण में काफ़ी दिक्कतें आईं। गौरतलब है की इतनी कठिनाइयां और इतना पैसा खर्च करने के बाद, इस पुल पर केवल एक ही रेलवे लाइन बिछाई गई है। प्रश्न उठता है कि आखिर ऐसा क्यों किया गया।

कटरा से बनिहाल के बीच की रेलवे लाइन पर यह पुल बना हुआ है, इसे बनाना अपने आप में बेहद कठिन प्रक्रिया थी। मुश्किल होने के कारण इसे पूरा करने में कई सालों का वक़्त लग गया। ऊपर से इस पुल को देखने के बाद कोई भी यही कहेगा कि इस पर आराम से 2 ट्रैक बिछाए जा सकते थे क्यूंकि यह काफ़ी चौड़ा है। तीन प्रमुख कारणों की वजह से इसे डबल ट्रैक नहीं किया गया और वह कारण हैं पर्यटन, मरम्मत और रेलगाड़ियों की आवाजाही।

पुल इतनी ऊंचाई पर होने के कारण अगर ट्रैक के दोनों तरफ़ पर्याप्त मात्रा में बड़ी जगह नहीं छोड़ी जाती तो जब मरम्मत का समय आता तब वहां तक सामान लेकर पहुंचना काफ़ी जटिल हो जाता। ट्रैक के बगल में ज़्यादा जगह ना होने के कारण सामान को बार-बार नीचे से ऊपर चढ़ाना पड़ता, क्यूंकि वहां पर सामान नहीं रखा जा सकता था, लेकिन ये परेशानी अब नहीं होगी।

इसके अलावा, यह पुल खूबसूरत वादियों के बीच मौजूद है और दुनिया का सबसे ऊंचा पुल भी है। तो ज़ाहिर सी बात है की लोग यहां ज़्यादा तादाद में होंगे क्यूंकि यहां पर्यटन बढेगा, लोग इस पुल पर आसानी से घूम सकें इसीलिए ट्रैक के बगल में बड़ी जगह दी गई है। तीसरा इस रुट पर दो ट्रैक की ज़रूरत इसलिए भी नहीं पड़ी क्यूंकि यहां रेलगाडीयों की आवाजाही उतनी ज़्यादा नहीं है।

इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए अगर पुल पर दो ट्रैक बिछाए जाते तो पुल को और चौड़ा करना पड़ता जिससे ऊंचाई बाधा बनती क्यूंकि इतनी ऊंचाई पर अधिक चौड़ाई सुरक्षित नहीं होती है। साथ ही पहाड़ काटकर उसके अंदर जो ट्रैक बनाया गया है वहां भी दो लाइन बिछानी पडती जिसके कारण खर्च और ज़्यादा बढ़ जाता।

आशीष ठाकुर – हिमाचल प्रदेश