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जलवायु खतरों से निपटने को लेकर, जी-20 देशों के पास नहीं है कोई ठोस रणनीति।

पूर्व जी-20 देशों ने सदी के अंत तक तापमान बढ़ोत्तरी को डेढ़ डिग्री तक सीमित रखने पर सहमति तो प्रकट की है। लेकिन इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए उनके पास अभी भी ठोस रणनीति का अभाव है। लक्ष्य को हासिल करने के लिए जी-20 देशों को कई मुद्दों पर स्पष्टता प्रकट करने की जरूरत थी जो कि उनके द्वारा नहीं की गई। इसलिए उनके द्वारा उठाए जाने वाले कदम जलवायु खतरों से निपटने में निर्णायक साबित होंगे। लेकिन जी-20 देशों की डेढ़ डिग्री पर सहमति की घोषणा लुभावनी है लेकिन वे इसका रास्ता नहीं बता रहे। सिर्फ यह कहा गया है कि सदी के मध्य तक नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल किया जाएगा। लेकिन देश के भीतर निवेश पर रोक पर कोई पाबंदी नहीं है। इसी प्रकार जलवायु खतरों से निपटने के लिए कोयले से पैदा होने वाली बिजली पर निर्भरता खत्म करने पर जोर दिया जा रहा है। लेकिन जी-20 देशों का घोषणापत्र इस मुद्दे पर चुप है।20 देशों की तरफ से कोई रोडमैप तैयार नहीं किया गया है। जबकि हरित ईधन को बढ़ावा देने के लिए यह बेहद जरूरी है।2009 में यह तय किया गया था कि धनी देश 100 अरब डालर प्रतिवर्ष जलवायु खर्चों से निपटने के लिए देंगे। पहले 2015 में इसे पूरा होना था। फिर 2020 की तारीख रखी गई। अब जी-20 देशों ने इसे 2025 तक पूरा करने की बात कही है। जबकि इसमें और देरी नुकसानदायक हो सकती है। समय बर्बाद हो रहा है और जरूरी प्रयास शुरू नहीं हो पा रहे हैं।

सतीश कुमार