” सकारात्मक रहिए और अच्छी खबरें दीजिए “!
ये शब्द आज कल के हालात से जनता को रूबरू कर रहे हर पत्रकार को दिन में एक या दो बार सुनने को मिल ही जाते होंगे । सुबह से अस्पतालों में मरीजों की चीख सुनकर भी अपने आप को संभाल कर जब एक पत्रकार उन्ही मरीजों के दर्द को शब्दों में बयां करने की कोशिश करता है तब आपके ये शब्द उसे गाली जैसे लगते होंगे । देना तो आप गाली ही चाह रहे होंगे उसे पर बस रुक गए होंगे । लिखते हुए उसके हाथ कांपते होंगे कि मेरी आंखों देखी जनता कैसे पढ़ पाएगी ? दिन में सूरज कि गर्मी और चिताओं पर जल रही हजारों लाशों की राख का भी सौदा जब एक पत्रकार कैमरा में कैद कर उसे खबर के लिए भेज रहा होगा तो उसका पसीना गिर रहा होगा क्योंकि आपके वो शब्द उसे रोक रहे होंगे । रात में जब वो पत्रकार घर आता है मां के हाथ का खाना खाने बैठता है और थोड़ा असहज हो जाता है । मां को बताना चाहता है कि सच कितना डरावना है तब वो चुप्पी साध लेता है क्यूंकि आपके शब्द उसे बोलने ही नहीं देते । अगली सुबह जब वो पत्रकार फिर एक नए सफर पर निकल पड़ता है नई खबर कि तलाश में कंधों पर ज़िम्मेदारी लिए कि ज़िम्मेदार से सवाल करने है । तब आपकी ये बातें उसी के ज़हन में सवालों कि बाढ़ ले आती है । सोच समझने कि क्षमता जैसे काम करना बंद कर रही होती है क्यूंकि देश को दिखाना है सच, तस्वीरों से खबरों से देश को बताना है सब । हर हालात से जनता को रूबरू करवाना है, आम जनता की मदद के लिए पहले उन्ही कि तस्वीर दिखा कर उनकी आंखो पर बंधी पट्टी को उतरवाना है । जिस पत्रकार को देश खोज रहा है वो बन कर दिखाना है। लेकिन जब आप कहते हैं की कुछ सकारात्मक दिखाइए । तो इससे ज़्यादा क्या सकारात्मक होगा कि आपको हर नाकामी का सकारात्मक प्रभाव बताने वाले ….बड़े बड़े चाटुकारिता करते लोगों कि असली पहचान बता दी जाए ?
क्योंकि टीवी चैनलों पर खबर के नाम पर तो वो आपकी भावनाओं से खेल चुके हैं कम से अब इन गिने चुने जमीर वाले लोगों को तो सच्चाई दिखाने दो । इससे ज़्यादा सकारात्मक क्या होगा कि निकम्मे सिस्टम कि पोल खोल दी जाए । corona काल के इस भयानक मंजर को देख कर भी वो आप तक खबरें पहुंचा रहा है इससे ज़्यादा सकारात्मक आप क्या चाहते हैं ?सकारात्मक है सच्चाई दिखाना … सालों से जमी दीमक को देश को खोखला करने से पहले ही उसको खत्म करने का जरिया तलाशना….जो हालात भारत में है उसके लिए आखिर सरकारों की क्या तैयारी है उसपर सवाल उठाना। नकारात्मक तो है सब देख कर भी अपना मुंह छुपाना और जो वाकई सच्चाई दिखा रहें है उसको कहना की कुछ अच्छा दिखाना ! आपदा के वक़्त ही सही पर कुछ बुरा देख कर आप अच्छा करने लगे तो क्या सही मायने में ये सकारात्मक खबर नहीं होगी ? तो अगर आप वाकई सच देखने से डरते है तो कम से कम इन पत्रकारों को तो नकारात्मक कहना छोड़ ही दो क्योंकि इस सिस्टम ने सकारात्मक अब कुछ रहने ही नहीं दिया है।
-मेघना सचदेवा, दिल्ली स्टेट हेड।